Like Box

Friday, December 21, 2012

दुःख से साक्षात्कार


बहुत दिन हो गए दुःख को यहाँ आये,
जमाना बीत गया यहाँ पैर फैलाये,
सोचा आज कर ही लेते है दुःख से साक्षात्कार ,
पूछ लेते है क्या है इसके आगे के विचार ,
हमने पूछा दुःख से थोडा घबरा कर ,
वो भी सहम गया हमे अपने पास पाकर ,
आजकल काफी पहचाने जा रहे हो ,
महंगाई ,गरीबी, गैंगरेप आदि विषयो से चर्चा में आ रहे हो ...
दुःख चोंका, फिर  सहमा, और मुंह फिरा कर धीरे से बोला ...
मुझे पालने पोसने, बड़ा करने में आप लोगो का भी योगदान है ...
और उसके पीछे आप लोगो के  अपरिवर्तनीय परिवर्तन और संकीर्ण सोच का श्रमदान है।।।
मैं स्वयं नहीं चाहता हूँ यहाँ रहना, जाना चाहता हूँ अपने घर ...
लेकिन सरकार  ने मेरे जाने पर लगा दी रोक और मुझे लिया धर ...
कई बार की कोशिश मैंने भागने की ,
सारी ताकत लगा दी उन्हॊने मुझे वापस लाने की ,
मैं फिर यहाँ रह गया ,
मेरा सौतेला भाई सुख भी देखता रह गया ,
दुःख की व्यथा सुन कर हम चुप हो गए ,
और इस तरह हम दुःख के दोस्त हो गए ।।

Tuesday, July 3, 2012

"इस रिक्त जीवन में, करने को बहुत कुछ है"

रिक्त ह्रदय रिक्त मन,
संपूर्ण संसार,
निरंतर कोशिश,
जिंदा रहने की,
एक प्रतिस्पर्धा,
स्वयं से,
स्वयं तक पहुचने की,
आसमान ओझल,
सुनसान भीड़,
हारे तो जीत,
जीते तो हार,
अजीब असमंजस,
मौत की कल्पना,
जीने का बोझ,
इस रिक्त जीवन में,
करने को बहुत कुछ है ॥

सीढियों पर किस्मत बैठी थी..

सीढियों पर किस्मत बैठी थी..
ना जाने किसका इंतज़ार कर रही थी..
उससे देख एक पल मैं खुश हुआ..
और पास जाकर पूछा..
क्या मेरा इंतज़ार कर रही हो...
उसने बिना कुछ बोले मुहँ फेर लिया..
दो तीन बार मैंने और प्रयास किया..
पर वो मुझसे कुछ ना बोली...
मैं समझ गया ये किसी और के लिए यहाँ बैठी है..
इस बार मैंने कोशिश की उससे रिझाने की..
अपना बनाने की...
उसने पलट कर देखा पर कुछ कहा नहीं..
एक विचित्र सी फ़िल्मी स्तिथि थी..
मैं उसे अपना बनाना चाहता था और,
वो किसी और की होना चाहती थी...
मैं भी वही बैठा रहा..
उससे अपना बनाने की युक्तियासुझाते रहा..
कुछ क्षण के लिए मेरी आँख लग गयी..
और किस्मत आँखों से ओझल हो गयी..
मैंने बहुत अफ़सोस मनाया और मायूसी से उठा..
इतने में किसी ने बताया..
मुझे कोई पूछ रहा था..
अपना नाम कुछ "क़" से बताया था..
उसने बहुत देर इंतज़ार किया मेरा..
और चला गया..
और अब मैं विवश बैठा हु सीढियों पर..
अगले कदम की योजना बना रहा हुं...

Monday, June 18, 2012

ना जाने मेरी ख़ुशी कहां उदास होकर बैठी है..

बात उन दिनों की है, जब ख़ुशी मेरे साथ रहती थी,
न कोई समस्या न कोई चिंता रहती थी...
हम दोनों साथ साथ समय बिताते थे..
कभी आपस में रुठते तो कभी मनाते थे..
इसी तरह जीवन बिताते थे,,
इतना गहरा नाता था,
आँख खोलता तो ख़ुशी थी,
आँख बन्द करता तो ख़ुशी थी,
सोता तो ख़ुशी थी,
रोता तो ख़ुशी थी,
हँसता तो ख़ुशी थी ही..
एक दिन किसी बात से उस से नाराज़ होकर सोया था..
उठ कर देखा तो ख़ुशी नहीं थी..
मैंने उससे बहुत ढुढां..
बाहर बरामदे में देखा..
पास गलियारे में ढुढां..
दूर चौराहे तक देख कर आया..
पर वो कही नहीं मिली...
अँधेरा होने तक ढूंढ्ता रहा..
ना जाने कहा चली गयी थी वो..
पहली बार उस अँधेरे से डर लग रहा था..
जिसे कभी डराया करता था..
सुबह भी हुई,पर अँधेरा ही लग रहा था...
डर वैसा ही था..
आज भी वैसा ही है..
ना जाने मेरी ख़ुशी कहां उदास होकर बैठी है...

Monday, February 20, 2012

मेघा

रात के बाद फिर रात हुई...
ना बादल गरजे न बरसात हुई..
बंजर भूमि फिर हताश हुई..
शिकायत करती हुई आसमान को..
संवेग के साथ फिर निराश हुई..
कितनी रात बीत गयी..
पर सुबह ना हुई..
कितनी आस टूट गयी..
पर सुबह ना हुई..
ना जला चूल्हा, ना रोटी बनी..
प्यास भी थक कर चुपचाप हुई..
निराशा के धरातल पर ही थी आशा..
की एक बूँद गिरी पेरों पर..
बूँद तो आँखों से ही गिरी थी..
लेकिन इस रात की सुबह हुई थी..
और कुछ यूँ बरसी मेघा...