Like Box

Friday, May 13, 2022

ना जाने वो कहाँ है आजकल

ना जाने वो कहाँ है आजकल
सुनाई भी नहीं देते
ढूंढने जाऊं भी तो कैसे ढूँढू
कैसे पहचानूँ इस भीड़ में
मैने तो सिर्फ आवाज़ ही सुनी थी उनकी 

आवाज़ लगायी थी आज सुबह ही उनको 
जोर से चिल्लाया भी
ना सुना उन्होंने या अनसुना कर दिया
इस भीड़ में अकेला कर दिया
क्या करू अब मैं
बैठा रहु या चल पडूँ

ना वो मुझे मिल रहे है
ना मैं किसी से मिल रहा हूँ 
इस छुपम छुपाई के खेल में 
जीवन चल रहा है 

क्यों तलाश है मुझे
जानते हुए भी कि
मिलेंगे नहीं वो अब कभी
धैर्य टूटा, टूटी हिम्मत
टूटा आत्मा विश्वास
बस एक उम्मीद ही नहीं टूट रही है। 


Friday, May 6, 2022

क्या रे मन

क्या रे मन 

क्यों विचलित है 

वो नहीं है 

कोई बात नहीं 

रिक्त है तो

क्यों घबराता है 

ऐसे विवश ना हो 

हतोत्साहित ना हो 

ये जीवन चक्र है 

ये भी देखना पड़ता है 

दृढ कर अपनी धमनियों को 

प्रेम कर स्वयं से 

उद्घोष कर 

अपनी हार की 

और विजय की ओर चल। 



Thursday, April 28, 2022

ओ लड़की

बस, बहुत हुआ 
अब आंसू न बहा 
ना विलाप 
ना पश्चाताप 
खड़ी हो, और 
हुँकार भर 
तू ही सर्वेसर्वा है 
तू ही माँ करणी 
तू ही जगदम्बा है 

कौन है वो 
कहाँ है वो 
परवाह ना कर 
उनके शब्दों की 
कर वज्रपात 
उनके सीने में 
जो कर ना सके 
व्यवधान
तेरे जीने में 

तू आगे बढ़ 
अब ना डर 
स्वयं से 
ये प्रतिज्ञा कर 
ना चाहिए तुझे 
हाथ किसी का 
ना चाहिये 
साथ किसी का 
अब खुद संभल 
और संभल कर चल 

बहुत बहा लिए 
ये अनमोल अश्रु 
कीमत इसकी 
यहाँ किसी को नहीं 
सशक्त बन 
और निडर हो 
निर्निमेष पथ पर 
अकेले चल 
विजयी भव:

~ आभार 











Tuesday, October 26, 2021

ओह दिवाली !

आज अवसर मिलते ही अपना स्कूटर उठाया 
और बाहर को निकला
सोचा दिवाली पर कुछ ले आऊं  
जाते जाते 500 रुपये अपने जेब में रख लिए। 

जैसे ही बाहर निकला तो
बाजार में भगदड़ सी मची हुई थी
लोग इधर से उधर भाग रहे थे 
कुछ क्षणों बाद समझ आया 
ये दिवाली की खरीद दारी में लगे हुए है। 

मैं एक दुकान पर रुका 
और नकली फूलो वाली सजावटी बेल का दाम पूछा 
ये तो मेरे पास रखे हुए 500 रूपये से भी ऊपर जा रही थी। 

फिर मैं रौशनी, लाइट और मोमबत्तियों की ओर गया 
लाइट की और मैं आकर्षित हुआ 
और अपने घर के 2 द्वार, छत एवं पूजा घर का हिसाब लगा कर 
घबराती हुई आवाज़ से दुकानदार से लाइटो का दाम पूछा
दाम सुनते ही निराश होकर वो लाइटे वही रख दी
और स्कूटर उठा कर आगे निकल गया। 

किसी ने बताया कि सस्ता सामान कहा मिलेगा
तो मैं वहाँ चला गया 
कुछ दूर चलते चलते एक सजा हुआ बाजार सा दिखा 
मैं तुरंत रुका और अंदर दुकानों की ओर बढ़ा 
आतिशबाज़ीऔर पटाखों का बाजार लग रहा था 
तो सहसा मन में विचार आया कि 
बच्चो के लिए फुलझड़ी, जमीन चक्कर और फव्वारे ही ले चलते है 
अपने मन का तो कुछ आ नहीं रहा इस दाम में 
बच्चे ही खुश हो जायेंगे, 
एक दुकान पर एक रंगीन फव्वारे के डब्बे का दाम पूछा 
दाम सुनते ही, सकपकाते हुए और कुछ बड़बड़ाते हुए मैं 
बाहर की ओर निकल आया। 

ऐसा लगा जैसे किसी ने मुझे बताया 
सिंह साब, ये आप किसी दुनिया में जी रहे हो 
500 रुपये का मतलब 5 रुपये होता है अब 
और आप ना जाने क्या क्या लेने आ गए। 

मुझे भी अहसास हुआ कि 
कोरोना काल में,
मैं कितना पीछे चला गया,
और रुपया कितना आगे चला गया। 

मैंने अपना स्कूटर मोड़ा
200 रूपये का पेट्रोल भराकर 
घर की ओर वापस आ गया
अभी भी अज्ञात हूँ दिवाली पर अब 
300 रूपये में क्या लेकर आऊं। 





Wednesday, May 5, 2021

कोरोना

कोरोना वहां इठला कर खड़ा है,

और यहाँ धैर्य, साहस और विश्वास की मंत्रणा चल रही है। 

धैर्य बोला, थक गया मैं इस से लड़ लड़ के,

वापस आ जाता है, ये दुगुनी शक्ति से। 

धैर्य की बात सुनकर, साहस भी धीमे स्वर से बोला,

दुर्बल हो गया हूँ मैं भी, इसकी विविध शक्तियाँ देख कर,

इतना धैर्य रख रख कर, मेरा भी साहस कम हो गया है,

साहस के साथ धैर्य भी, इसके आगे नत मस्तक हो गया है। 


विश्वास, इतने समय से मौन खड़ा था,

धैर्य और साहस का वार्तालाप बड़े ही गौर से सुन रहा था,

सहसा उसने धैर्य और साहस का हाथ पकड़ कर जोर से झुंझलाया,

और ऊँचे स्वर में बोला, मुझे विश्वास है तुम दोनों पर,

तुम क्यों नहीं रखते विश्वास मुझ पर,

अरे कठिन समय में, दुर्बल परस्तिथियो में,

तुम दोनों की ही तो मिसाल दी जाती है,

कोई भी जंग तुम दोनों की उपस्तिथि में ही लड़ी जाती है,

क्यों थक कर बैठ गए तुम,

क्यों हार मान कर बैठ गए तुम,

अपने विशवास के स्तर को ऊपर ले जाओ, 

और अपने अंदर इतना मनोबल बढ़ाओ,

की कोरोना पर विजय की पताका लहराओ,

धैर्य, साहस और विश्वास, अब सब एक हो जाओ,

और इस कोरोना महामारी को मार भगाओ। 


जय हिन्द। 





 

Tuesday, May 4, 2021

कोविड - 19

चारों ओर से आती हुई एम्बुलेंस की धुँधली आवाज़ें भी,
हर बार कुछ क्षण के लिए ह्रदय की धड़कने बढ़ा जाती है,

मष्तिष्क किसी तरह ह्रदय को संभालता है,
और ह्रदय फिर फेफड़ो की चिंता में डगमगाता है,

ऑक्सीमीटर में ऑक्सीजन स्तर जांचने के बाद ही,
सुकून की सांस ले पाता हूँ,

टीवी पर ऑक्सीजन सप्लाई की कमी को लेकर,
आ रही खबरों से कई बार संकुचित हो जाता हूँ,
सहसा सांसो में तकलीफ सी होती है,
और घबराहट बढ़ जाती है,

तुरंत पेट के बल लेट जाता हूँ,
कुछ सांसो का व्यायाम करके,
गरम वाष्प लेने लग जाता हूँ,
ऑक्सीमीटर में ऑक्सीजन का स्तर मापता हूँ,
और रीडिंग अठानवे आते ही अपने आप को शांत रख पता हूँ,

चार-पांच वर्षो में भगवान को याद करने वाला मैं,
उन्हें दिन में चार-पांच बार याद कर जाता हूँ,
उनसे क्षमा मांग, उनके सुमिरण में लग जाता हूँ,
उनका पाठ कर अपने रिश्ते सबल बनाता हूँ,

इस विपदा की घड़ी में, मैं ना जाने कितनी बार घबराता हूँ,
लेकिन प्रत्येक दिन मैं स्वयं को पहले से मजबूत पाता हूँ,

कुछ भी हो किन्तु इस आपदा ने मुझे शिक्षित किया,
अपने शरीर का ध्यान रखना सिखाया,
अपने इष्ट से मिलाया, 
धैर्य रखना सिखाया, 
हिम्मत ना हारना सिखाया,
लोगो की सहायता करना सिखाया,
विश्वास करना सिखाया,
मैं कर रहा हूँ, आप भी करें,
घबराये नहीं, साथ मिल मिलकर इससे लड़े। 





 


 




Wednesday, August 7, 2019

तमाशा बना रखा है एक जीव का

बहुत तेज़ बारिश  हो रही थी। करण ने अपनी कार सड़क के किनारे खड़ी कर दी और अपने दोस्त वसीम को फ़ोन लगाया। उसने फ़ोन पर कहाँ "8 बजने वाले है, जल्दी से ले आ नहीं तो दुकानें बंद हो जाएगी। इतना मस्त मौसम हो रहा है, जल्दी आ और सतीश को भी फ़ोन कर दे, कहर ढायेंगे आज तो ।" इतना बोल कर करण ने फ़ोन रख दिया और एक सिगरेट निकाल कर पीने लगा। 
थोड़ी देर में सतीश और वसीम एक टैक्सी से वहां पहुंचे और करण की कार में बैठ गए। उन तीनो ने वहां बैठ कर शराब पीनी शुरू की। तभी वहां से पुलिस की एक जीप निकल कर गयी, सतीश ने डरते हुए कहा "यार, करण कहीं पुलिस का ध्यान यहाँ ना पड़ जाए, जल्दी से ख़तम करके निकलते है।" करण ने बड़ी बेबाकी से जवाब दिया "अरे, तू डर मत, इन सबको मैं संभाल लूंगा। मेरा बाप बहुत पैसे छोड़ कर गया है।  वो कब काम आएंगे।  ये पैसा सबका मुँह बंद कर देता है भाई।" ये बोल कर तीनो ठहाके लगा कर हंसने लगे।
जब तीनो मद्यमय थे तभी करण को बाहर एक लड़की अपनी स्कूटी को पैदल घसीटते दिखाई दी। करण ने अपने दोनों दोस्तों का ध्यान उस लड़की की ओर दिलाया और बोला "आज तो सही में कहर ढायेंगे दोस्तों, शराब के साथ कुछ शबाब भी होना चाहिए।" उसके दोस्त सतीश ने कहां "अरे छोड़ यार, क्यों बिना वजह झमेला खड़ा कर रहा है।" करण ने सतीश की तरफ देख कर कहां "अबे, तू क्यों डर रहा है, मैं तो पहले भी कई बार ऐसे रस्ते चलते कइयों को लपेट चुका हूँ, आज तो मुझे दशक पूरा करना है अपना।" वसीम भी करण के साथ सहमत था। उन दोनों के दबाव में आकर सतीश भी सहमत हो गया। 
तीनो अपनी कार से बाहर निकले और उस लड़की की सहायता करने के बहाने उस से बात की। लड़की उन तीनो को देखते ही सारी स्तिथि भांप गयी और अपनी स्कूटी उनके ऊपर पटक कर भागने लगी। किन्तु वसीम ने उसे पीछे से पकड़ लिया और करण ने उसके मुँह पर हाथ रख दिया। सतीश की मदद से वो तीनो उस लड़की उठा कर अपनी कार में ले आये। 

तीन महीने बीत चुके थे। करण अपने प्रॉपर्टी  के काम में व्यस्त था और उसके दोनों दोस्त अपने अपने काम से दूसरे शहर बस चुके थे।  करण की वही दिनचर्या रहती थी। भू माफिया का काम करना और रात में शराब पार्टी करना।  पिछले कुछ समय से उसके पेट में अजीब सा दर्द रहता था। रात को ज्यादा शराब पीने की वजह से सुबह उसका हैंगओवर होता था। उल्टिया होती थी और मन बैचैन रहने लगा था। उसने कई बार सोचा कि किसी डॉक्टर से परामर्श कर ले किन्तु अपने व्यसनों की वजह से उसे अपने स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रहता था। अब कुछ समय और निकला उसके पेट में अजीब सा दर्द बढ़ा और साथ में पेट का आकार भी। अब उसे यकीन हो गया था कि ये कोई अल्सर की गाँठ है जो समय के साथ बढे जा रही है। इस बार उसने डॉक्टर से परामर्श किया। डॉक्टर ने उसे कुछ जांचे करवाने को कहा।  उसने अपनी सभी जांचे करवाई और रिपोर्ट्स डॉक्टर को दिखाने गया। 
डॉक्टर ने जैसे ही सोनोग्राफी की रिपोर्ट देखी और सतब्ध रह गया।  करण ने डॉक्टर के माथे का पसीना देख कर जोर से पूछा "मुझे क्या हुआ है डॉक्टर।" डॉक्टर ने उसकी तरफ देख कर कहा "ये कैसे हो सकता है।" करण ने घबरा कर डॉक्टर से पूछा "आखिर मुझे हुआ क्या है डॉक्टर साब", डॉक्टर ने कहा "तुम्हारे पेट में 5 महीने का गर्भ पल रहा है।" ये सुन कर करण भौंचक्का रह गया। डॉक्टर ने आगे कहा कि "ये वैज्ञानिक तर्क से बिलकुल परे है। तुम्हारी और जांचे की जाएगी। तुम्हे बड़े अस्पताल में भर्ती करके इस अप्राकृतिक संयोग की जाँचे की जाएगी।" डॉक्टर का इतना बोलना था कि करण मेज पर पड़ी अपनी रिपोर्ट्स लेकर वहां से भाग गया। 
करण सीधे अपने घर पर आकर रुका। अपने बिस्तर पर लेट कर वो बहुत रोया और सोचने लगा ये कैसे हो सकता है। कही डॉक्टर से कोई गलती तो नहीं हो गयी या कोई रिपोर्ट्स बदल गयी। अपने बढ़े हुए पेट को बार बार छू कर समझने की कोशिश करता रहा।  उसे अब अपनी पिछली सारी गलत कृत्य एक एक करके याद आने लगे।  किसी बुजुर्ग का घर छीन लिया।  कितनी लड़कियों की आबरू छीन ली। 
अचानक उसे याद आया की बारिश की एक रात में उसने अपने दो दोस्तों के साथ एक लड़की को ज़बरदस्ती उठाकर उसके साथ बलात्कार किया था। और वो इतना निर्दयी हो गया था कि अपने बलात्कार के दसवे क्रमांक को सेलिब्रेट करने के लिए उस लड़की का अपहरण करके दस दिन तक उस से रोज बलात्कार करता रहा। उसे तरह तरह की यातनाये दी। उस लड़की की यौन अंग में शराब की बोतल तक डाल दी।  उस लड़की के शरीर पर सिगरेट की राख से जख्म दिए। और उसके बाद लड़की को जंगल में कूड़े के ढेर की तरह फेंक आया।

अब करण जी को अपने किये पर पछतावा होने लगा। उसे लगने लगा कि ये उसके बुरे कर्मो के फल है। उसने तुरंत अपने दोस्त सतीश को फ़ोन लगाया जो कि उसकी पत्नी ने उठाया और सतीश के बारे में जानकारी दी कि वो किसी दूसरे शहर गए है। उसने अपने दूसरे दोस्त वसीम को फ़ोन किया और उसके हालचाल पूछे तो उसने बताया कि वो ठीक है और अपने काम काज में व्यस्त है।
अब करण को डर लगने लगा कि अगर सही में उसके पेट में गर्भ है तो वो शर्म से ही मर जाएगा, दुनिया का सामना कैसे करेगा। उस दिन वो सो नहीं पाया और रात भर डर में रहा।  उसने सोचा कि वो किसी और डॉक्टर से परामर्श करेगा। उसके दिमाग में हज़ारो ख़याल आने लगे। इस अप्राकृतिक घटना पर उसे आश्चर्य भी हो रहा था और पछतावा भी। अब उसे समझ नहीं आ रहा था कि जब ये बात खुलेगी तो किस किस के मुँह बंद करेगा। क्योकि पैसे से मुँह बंद करना तो उसकी आदत थी। 
अगले दिन सुबह वो अपने किसी दोस्त के जानकार डॉक्टर से परामर्श कराने पंहुचा। डॉक्टर ने उसकी सारी रिपोर्ट्स देखी और उसे समझाया ये बहुत ही दुर्लभ परिस्तिथि में ऐसा हुआ है। किसी विशिष्ट हार्मोन वाली लड़की के साथ बार बार सम्बन्ध बनाने की वजह से ऐसा हुआ। अब उसके मन में जो शंका थी वो यकीन में बदल गयी थी कि ये उसी लड़की के साथ किये गए बलात्कार का परिणाम है। उसे याद आया कि उसके साथ तो उसके दोस्तों ने भी बलात्कार किया था किन्तु उन्हें तो ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।
कुछ दिनों करण बहुत तनाव में रहा और एक दिन उसने अपने आप को फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली।
उसके घर पुलिस आयी, पोस्टमार्टम हुआ तो सारी बात दुनिया के सामने आ गयी। टीवी न्यूज़ चैनल और अख़बार में ये अनहोनी खबर सुर्खियों में थी। 
एक डाकिये ने जब ये खबर पढ़ी तो वो अख़बार लेकर अपने घर पंहुचा और ये विचित्र खबर उस लड़की को सुनाई जिसे वो 5 महीने पहले लगभग मृत अवस्था में जंगल से उठा कर लाया था। उसका इलाज करवाया किन्तु वो लड़की कोमा में चली गयी थी। उस लड़की  की आँखें तो खुली रहती थी किन्तु ना तो वो सुन पाती थी और ना बोल पाती थी। वो डाकिया उस लड़की को कई खबरे और कहानिया अक्सर सुनाया करता था ताकि वो लड़की  किसी बात का तो जवाब दे। इसलिए ये खबर भी डाकिये ने उस लड़की को सुनाई।  लेकिन इस बार उस लड़की ने कुछ बुदबुदाया।  डाकिये के चेहरे पर प्रसन्नता की लहार दौड़ आयी। इतने महीनो बाद आज इस लड़की ने  बोलना चाहा।  उस लड़की ने डाकिये से धीमे स्वर में बोलै "बाबा, अभी ऐसी २ खबरे और आना बाकी है।"
लड़की ने उस डाकिये को सारी बात बतायी और ये भी बताया कि "कोमा में जाने बाद भी ऐसा कोई दिन नहीं गया जब मैंने भगवान् से प्रार्थना नहीं की हो कि उन तीनो के साथ भी कुछ ऐसा हो जिस से उन्हें एक लड़की दर्द का पता चले। एक लड़की की मनोस्तिथि पता चले। मैंने बिलकुल यही माँगा था भगवान् से, उन्हें यही सजा दे।कितनी शर्म का सामना करना पड़ता है जब बलात्कार जैसी कोई घटना किसी लड़की के साथ घट जाती है।  उनका खुद का समाज, उनके सगे सम्बन्धी तक उन्हें अशुद्ध मान कर अस्वीकार करते है।  कोई अपनाने को तैयार नहीं होता।  और उनके माँ बाप का क्या हाल होता है, जब वो ऐसी घटना अपनी बच्ची के बारे में सुनते है।  कलेजा फट जाता है उन लोगो का, बाबा। ऐसे लड़को के लिए बहुत आसान होता है, किसी भी लड़की का बलात्कार करना। कोई डर ही नहीं बचा उन लोगो में। अपने पैसे, शराब और वासना के नशे में चूर ऐसे लड़के कभी भी, किसी भी समय ये कुकृत्य  कर देते है। आज मन कर रहा है, चलो बलात्कार कर  देते है।  इस लड़की ने दोस्ती के लिए मना कर दिया, चलो बलात्कार कर देते है।  आज मौसम अच्छा है, बारिश हो रही है, चलो बलात्कार कर  देते है।  जिस दिन इनके पेट में गर्भ धारण होगा ना तब समझेंगे ये कुछ ऐसी घटिया मानसिकता वाले लड़के।
इतने महीने की चुप्पी तोड़ने के बाद उस लड़की ने इतना बोला कि उस डाकिये के पास बोलने को कोई शब्द नहीं बचे थे। वो बस उन २ आत्महत्या की खबरों की प्रतीक्षा कर रहा था। जो कुछ समय बाद उसे मिल भी गयी। सतीश और वसीम ने भी करण की तरह इस बात को छुपाने की कोशिश की किन्तु वो अपने आप से, अपने कुकृत्य से, अपने बुरे कर्मो से हार गए थे। 

अनुलेख:  ये कहानी पूर्णतया काल्पनिक और आधारहीन है। किन्तु जिस प्रकार हर दिन सैकड़ो रेप हो रहे है तो ऐसे निराधार प्रसंग मन में आना स्वाभाविक है। अख़बार में हर दिन ये बलात्कार की खबर आती है। तमाशा बना रखा है एक जीव का।




Wednesday, July 31, 2019

टाइम क्या हुआ है भाई

समय के प्याले में,
जीवन परोसा जा रहा है,
अतिथियों का जमघट लगा है,
रौशनी झिलमिला रही है,
अरे, बुरी किस्मत जी भी आयी है,
लगता है, कुछ बिन बुलाये,
अतिथि भी आये है,
आये नहीं, जिनकी प्रतीक्षा है,
स्वयं प्यालो को,
विशेष अतिथि के रूप में,
कई लोगो का निमंत्रण था,
रात के दस बज चुके है,
आया नहीं अभी कोई उनमे से,
बाकि अतिथि आनंद ले रहे है,
जश्न का, एक और प्याले से,

ओह हो, लगता है, प्रवेश हुआ,
किसी विशेष अतिथि का,
चमचमाती कार से उतरती हुई,
झिलमिलाती साड़ी में "किस्मत" अंदर आयी,
और आते ही एक प्याले की ली,
सिर्फ एक चुस्की,
और चली गयी,
प्यालो का जश्न वही समाप्त हुआ,
और बाकी अतिथियो का जश्न,
अब भी चल रहा है,
इतने में एक प्याला चिल्लाया,
टाइम क्या हुआ है भाई। 

सफलता

बस कुछ ही दूर थी सफलता,
दिखाई दे रही थी स्पष्ट,
मेरा प्रिय मित्र मन,
प्रफुल्लित था,
तेज़ प्रकाश में,
दृश्य मनोरम था,
श्वास अपनी गति से चल रहा था,

क्षणिक कुछ हलचल हुई,
पैर डगमगाया,
सामने अँधेरा छा गया,
सँभलने की कोशिश की,
किन्तु गिरने से ना रोक पाया अपने आप को,
ना जाने कौन था,
जो धकेल कर आगे चला गया,
कुछ ही क्षणों में वो ओझल हो गया,
और मैं वही बैठा रह गया,

मेरा एक और मित्र प्रयास आया,
उसने मुझे उठाने का प्रयत्न किया,
किन्तु मैं वही बैठा रहा,
समस्या, जिससे मेरा दूर का नाता था,
उसने भी मेरा भरपूर साथ निभाया,
कुछ पश्चात् थक हार कर,
प्रयास चला गया,

और प्रकट हुई असफलता,
काले चेहरे वाली,
डरावनी सी,
आगे हाथ बढ़ाती हुई,
मेरे सामने आयी,
मैं डरा और सहमा बैठा रहा,
मेरे बाकी साथी हिम्मत और विश्वास भी,
कही दिखायी नहीं दे रहे थे,

ना जाने मेरे गिरते ही,
कहाँ चले गए थे,
मैंने ढूंढा भी नहीं,
और भयभीत होता रहा,

फिर कुछ देर मन से बात की,
हिम्मत, मेरा मित्र लौट आया,
उसने मुझे ढांढस बंधाया,
और मैंने उठने के लिए,
असफलता का हाथ थामा,
इस बार मैं उसके काले चेहरे से,
बिलकुल नहीं डरा,
और हिम्मत के साथ उठा,
मेरे उठते ही मेरा एक और मित्र,
विश्वास, लौट आया,
एक बार फिर मैं इन सब मित्रो के साथ,
निकल पड़ा, तलाशने,
चाहे कितनी ही दूर चली जाए,
कभी तो हाथ आएगी,
सफलता।


 


युद्ध तो होना ही है

निष्पक्ष न्याय की आशा...
विपक्ष अत्यंत दृढ़ एवं कठोर,
दुर्बल आशाओं का सामना...
सबल कल्पनाओं से।

घमासान निसंदेह दर्शनीय...
पूर्णतः पूर्वानुमानित,
किन्तु युद्ध तो होना ही है,
पक्ष विपक्ष रण में,
आमने सामने जो है।

ना कोई विचार विमर्श...
ना कोई संधि,
मुर्झायी सी धवल पताका,
सबकी दृष्टि से परे,
ना जाने क्या संकेत दे रही है,
और किसे दे रही है ,
अपने आप में खोयी हुई सी,
किन्तु युद्ध तो होना ही है।

तैयार खड़े आशाओं के महारथी...
लिए हाथ में अस्त्र शस्त्र,
सैनिक वीर कल्पनाओ के भी,
इरादे बुलंद,
प्रतीक्षा है,
समय के संकेत की,
जो अभी थमा हुआ है,
किन्तु युद्ध तो होना ही है।