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Friday, July 26, 2013

२५ वर्ष हुए

निरस्त जीवन ….
स्वयं  अनुमति से …
तलाश समाप्त …
अधुरा सारांश ….
एक व्यक्ति ….
सहस्त्र कल्पनाये …
चित एक…
अनेक आशाये ….
आशाओं को चीरती …
सिर्फ एक निराशा ….
जगमगाता सा ….
अँधेरा ….
चारो और धुंध ….
स्पष्ट  दृश्य ….
विकट स्तिथि ….
तटस्थ  परिणाम …
मन हलचल ….
शरीर स्थिर ….
फिर वो ही …
कौतुहल …
समान परिवेश ….
और परिभेष ….
और मैं विशेष ….
यु आसमान को निहारता …
खड़ा हूँ ….
२५ वर्ष हुए।। 

और अँधेरा मेरे साथ है

उस अँधेरे रास्ते में हल्की सी रोशनी आ रही थी ….
मुझे आगे बढ़ने से डरा रही थी …
अँधेरे  में चलने की आदत हो गयी थी ….
तो रोशनी की तरफ चलने में परेशानी हो रही थी…
कई बार सोचा आगे बढ़ने  के लिए …
लेकिन हिम्मत नहीं कर पाया …
काफी देर  वही खड़ा रहा ….
सहमे हुए…
एक चिंता और सता रही थी …
कही सुबह न हो जाये …
पूर्ण रूप से रोशनी न हो जाये …
पुनः पीछे जाने का मन कर रहा था …
मन जो स्वयं मन से डर रहा था …
उजाले से बचने वाले रास्ते की उधेड़बुन में …
समय जल्दी ही निकल रहा था …
जैसे जैसे समय बढ़ा ….
उजाला भी बढ़ता गया ….
धीरे धीरे अँधेरा पूरा चला गया …
रोशनी के आवरण ने नया रूप लिया …
अँधेरे के जाने की उदासी …
और इस नयी रोशनी की चमक ने ….
प्रजव्लित कर दिया …
मुझे…
मैंने अपनी आँखे बंद कर ली ….
और अँधेरे में वापसी कर ली ….
आज भी मैं अँधेरे के साथ …
और अँधेरा मेरे साथ है ……