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Sunday, January 12, 2014

अकस्मात

चार बूँद आँसू ......
और एक सरल मुस्कान....
समय का ऐसा प्रभाव...
दोनों साथ साथ …
मन भी समझ ना पाए …
इस समय-क्रीड़ा को …
एक रिक्त  स्थान के इर्द गिर्द …
अदृश्य भीड़.....
मैं अपने सामने खड़ा …
निहार रहा हूँ आत्मा …
शिकायते, नाराज़गी...विलाप,
और पछतावा ....
आये और चले गए …
विस्मित बुद्धि …
मौन खड़ा हूँ मैं …
और चार बूँद आँसू …
फिर एक स्थिर सरल मुस्कान …
छोटी होती जीवन रेखा …
क्यों बड़ी लग रही है …
अकस्मात।।