मैं भी छूना चाहता हूँ उस नीले आकाश को.…
जो मुझे ऊपर से देख रहा है,
अपनी और आकर्षित कर रहा है,
मानों मुझे चिढ़ा रहा हो,
और मैं यहाँ खड़ा होकर…
उसके हर रंग निहार रहा हूँ,
ईर्ष्या भाव से नज़रें टिका कर,
उसके सारे रंग देख रहा हूँ,
अनेक द्वंद मेरे मन में.....
कैसे पहुँचु मैं उसके पास एक बार,
वो भी इठला कर, कर रहा है अभिमान,
ये सोचते हुए की, हे आकाश.…
आऊंगा तेरे पास एक दिन,
बैठ कर आमने सामने, करूँगा बात,
दृष्टि नीचे कर आगे की और चल पड़ा मैं.....
जो मुझे ऊपर से देख रहा है,
अपनी और आकर्षित कर रहा है,
मानों मुझे चिढ़ा रहा हो,
और मैं यहाँ खड़ा होकर…
उसके हर रंग निहार रहा हूँ,
ईर्ष्या भाव से नज़रें टिका कर,
उसके सारे रंग देख रहा हूँ,
अनेक द्वंद मेरे मन में.....
कैसे पहुँचु मैं उसके पास एक बार,
वो भी इठला कर, कर रहा है अभिमान,
ये सोचते हुए की, हे आकाश.…
आऊंगा तेरे पास एक दिन,
बैठ कर आमने सामने, करूँगा बात,
दृष्टि नीचे कर आगे की और चल पड़ा मैं.....