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Thursday, September 29, 2011

"स्नेहा"

प्रयासों की भीड़ से,
एक प्रयास ऐसा भी,
जो पंहुचा अपने गंतव्य
के एकदम नज़दीक,
गंतव्य ने उसे देखा भी,
परखा भी,
फिर भी रोके रखा
कुछ दूर,
कभी उसे निहारता,
तो कभी मुह फेर लेता,
गंतव्य की ये पहेली,
बड़ी विचित्र है,
ना वो जानता है ना पहचानता है,
फिर भी समझता है,
ये गंतव्य भी विचित्र है,
दूर करके भी सहायता करता है,
और मैं तत्पर खड़ा हूँ,
लेने इसकी स्नेहा!!

Friday, September 9, 2011

"किस्मत"

एक दिन के लिए मुझे तेरी किस्मत दे दे,
मैं भी बनना चाहता हूँ चमकता सितारा,
मैं भी भागना चाहता हूँ एक अलग वर्ग की दौड़ में,
चढ़ना चाहता हूँ वो सीढ़िया, जिनके
मैंने सिर्फ सपने देखे थे,
उसी विश्वास के साथ चढ़ना चाहता हूँ,
एक दिन के लिए मुझे तेरी किस्मत दे दे,
ये वादा है मेरा लौटा दूंगा मैं वापस तेरी किस्मत,
आंच भी ना आएगी तू घबरा मत,
हज़ारो ख्वाहिशे खड़ी है इस बंद दरवाज़े के पीछे,
जिसकी चाबी सिर्फ पास है तेरे,
खोल दे दरवाज़ा आने दे बाहर इन्हें,
बाहर आकर एक बार पूरा होने का मौका दे इन्हें,
एक दिन के लिए मुझे तेरी किस्मत दे दे,
एक दिन के लिए मुझे तेरी किस्मत दे दे!

"रुक जा वापस आ ना"

रुक जा, मत जा,
कितना चीखा, कितना चिल्लाया,
रोया भी, पर वो न रुका,
आवाज़ भी नहीं सुनी,
कितना भागा, कितनी बार गिरा,
उठा, संभला, फिर भागा,
रातो जागा पर वो ना रुका,
सारी कोशिशे, सारे प्रयास,
साम, दाम, दंड, भेद,
सब विफल हुआ निराश,
यही सोच,एक अंतिम प्रयास,
किया इन्जार, पर वो ना रुका,
विश्वास भी दिलाया,वादा भी किया,
उसने कहा मुझे क्यों भागता है,
क्यों चीखता है,अब मैं जा चुका हूँ,
वापस ना आने के लिए,
लेकिन मैं फिर एक बार,
भागता हूँ....
अंतिम प्रयास सोच कर,
फिर भी, वो ना रुका,
अब मैं समझ गया हूँ,
विश्वास सिर्फ एक बार,
वादा सिर्फ एक बार,
फिर भी दुबारा दिलाने की,
कोशिश में, मैं...
भागता रहूँगा!

आँसू

"आँसू "
ये आँसू कहाँ गायब हो गए मेरे,
रोता हू तो भी बाहर नहीं आते,
छोड़ कर मुझे पता नहीं कहाँ चले गए,
मुझे फिर से अकेला कर गए,
बुलाता था इन्हें तो,
जल्दी से आ जाते थे,
समय पर आकर अपनी दोस्ती निभाते थे,
याद आती है मुझे इनकी,
जो इस अस्तित्व को संभालते थे,
इनके आते ही सारे गम भूल जाता था,
रोने के बाद बहुत हँसता और हँसाता था,
बहुत दिन हो गए कहाँ चले गए,
देखो आँखें नाम भी नहीं होती अब,
नाराज़ हो, तो माफ़ कर दो, वापस आ जाओ,
सिर्फ एक बार और अपनी दोस्ती निभाओ,
आके संभालो मुझे,
मैं राहे भटक रहा हूँ,
तुम बिन...
अपनी ज़िन्दगी गिन रहा हूँ!

Thursday, August 25, 2011

"शुभकामनाएं "
शुभकामनाएं इस नए व्यक्तित्व की,
इस नए स्वरुप की,
जो अभी अभी उभरा है,
एक और जन्म लेकर,
प्रकृति की अनन्त परिधि
में समाहित,
सहस्त्र नए परिवर्तन से परिपूर्ण,
एक नयी दिशा में भ्रमण,
एक उल्लास के साथ,
एक उत्साह के साथ,
एक पुर्वसीमित विश्वास के साथ,
जहा फिर मिलेंगे साथ,
लेकिन समयाबंधनो
के इर्दगिर्द,
फिर एक नयी तलाश,
एक बैचैनी सी और
नाराज़गी ज़िन्दगी से,
ये तो वक़्त की बुद्धिमानी
जो समां लेता है अटकले,
फिर मित्रता ज़िन्दगी से
और एक और व्यक्तित्व का
जन्म और फिर
शुभकामनाएं, जो सिर्फ मेरे
हृदय से नहीं निकलती|
"उम्मीद"
बस कुछ दूर ही रह गयी थी उम्मीद,
पहुचने ही वाली थी,
ऐसे रुकी मानो किसी ने रोक लिया हो,
पास जाने ही न दिया हो,
वही खड़े खड़े तड़प रही हो,
बस कुछ दूर ही रह गयी थी उम्मीद,
बहुत कोशिश करी उसने,
उस भ्रमजाल से निकलने की,
लेकिन हर बार उलझ सी गयी वो,
दम घुट रहा था उसका,
लेकिन सांस चल रही थी,
जैसे बिना पानी के कश्ती चल रही हो,
एक जगह आकर ठहर सी गयी वो,
बस कुछ दूर रह गयी वो,
मेरी उम्मीद......