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Friday, July 17, 2015

फिर भी आश्वस्त था

मैं अतिउत्साहित
गंतव्य से कुछ ही दूर था,
वहां पहुचने की ख़ुशी
और जीत की कल्पना में मग्न था,
सहस्त्र योजनाए और अनगिनत इच्छाओ की
एक लम्बी सूची का निर्माण कर चुका था,
सीमित गति और असीमित आकांक्षाओं के साथ
निरंतर चल रहा था,
इतने में समय आया
किन्तु उसने गलत समय बताया,
बंद हो गया अचानक सब कुछ
जो कुछ समय पहले चल रहा था,
निर्जीव हो गया मैं
किन्तु ह्रदय चल रहा था,
चलना प्रारम्भ किया फिर से उस दिशा में
ह्रदय के साथ अब मष्तिष्क भी चल रहा था,
जीत के कुछ पहले मिली हार से ध्वस्त था
फिर भी आश्वस्त था ॥




3 comments:

  1. Good poem about the situation when we lose an opportunity and again start to walk with a hope.

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