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Friday, May 13, 2022

ना जाने वो कहाँ है आजकल

ना जाने वो कहाँ है आजकल
सुनाई भी नहीं देते
ढूंढने जाऊं भी तो कैसे ढूँढू
कैसे पहचानूँ इस भीड़ में
मैने तो सिर्फ आवाज़ ही सुनी थी उनकी 

आवाज़ लगायी थी आज सुबह ही उनको 
जोर से चिल्लाया भी
ना सुना उन्होंने या अनसुना कर दिया
इस भीड़ में अकेला कर दिया
क्या करू अब मैं
बैठा रहु या चल पडूँ

ना वो मुझे मिल रहे है
ना मैं किसी से मिल रहा हूँ 
इस छुपम छुपाई के खेल में 
जीवन चल रहा है 

क्यों तलाश है मुझे
जानते हुए भी कि
मिलेंगे नहीं वो अब कभी
धैर्य टूटा, टूटी हिम्मत
टूटा आत्मा विश्वास
बस एक उम्मीद ही नहीं टूट रही है। 


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