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Thursday, December 24, 2015

क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाएँ

फुटपाथ पर बैठा दस वर्ष का बच्चा,
बड़े कौतुहल से किसी की प्रतीक्षा कर रहा है

घडी नहीं है उसके पास,
फिर भी एक एक क्षण गिण रहा है

आशा भरे नयनो से,
चारो और देख रहा है

अपना मन पसंद उपहार मिलने की उम्मीद में,
दिन भर से यही संता की बाट जो रहा  है

किसी ने बताया उसको,
की आज संता सबको मन पसंद उपहार दे रहा है

इसलिए अनगिनत क्षणों की गिनती के पश्चात भी,
वो आगे के सारे क्षण गिण रहा है

दिन का आखिरी पहर,
और संता कही दिख नहीं रहा है


धीरे धीरे उसका,
आशान्वित मन उदासी में बदल रहा है

इस बार भी ना आया संता,
और वो अब सर्दी से बचने की व्यवस्था कर रहा है।


क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाएँ ॥

Wednesday, December 2, 2015

स्वच्छता अहम समस्या

हमारी गली सड़क गाँव शहर देश की स्वच्छता एक अहम समस्या है
और लोग इसकी गंभीरता उतनी ही सरलता से लेते है।
आज दूसरो को स्वच्छता पाठ बड़े अच्छे से पढ़ाते है
और कल स्वयं ही गन्दगी फैलाते है।

अपने घर और दरवाज़े के बाहर  गंदगी पसंद ना करने वाले
बड़ी  आसानी से सड़क किनारे कचरा फेंक कर चले आते है,
और पूरा आरोप सिस्टम पर लगाते है।

अपने घर की स्वच्छता का ध्यान है
लेकिन देश की स्वच्छता में योगदान से कतराते है।
देश के विकास की बातें समझने वाले,
घर और देश की समानता  को समझ नहीं पाते।

आश्चर्य है इस मिश्रित स्वाभाव से,
तो मैं अकेला निकल पड़ा हूँ इस स्वच्छता अभियान में !

Friday, July 17, 2015

फिर भी आश्वस्त था

मैं अतिउत्साहित
गंतव्य से कुछ ही दूर था,
वहां पहुचने की ख़ुशी
और जीत की कल्पना में मग्न था,
सहस्त्र योजनाए और अनगिनत इच्छाओ की
एक लम्बी सूची का निर्माण कर चुका था,
सीमित गति और असीमित आकांक्षाओं के साथ
निरंतर चल रहा था,
इतने में समय आया
किन्तु उसने गलत समय बताया,
बंद हो गया अचानक सब कुछ
जो कुछ समय पहले चल रहा था,
निर्जीव हो गया मैं
किन्तु ह्रदय चल रहा था,
चलना प्रारम्भ किया फिर से उस दिशा में
ह्रदय के साथ अब मष्तिष्क भी चल रहा था,
जीत के कुछ पहले मिली हार से ध्वस्त था
फिर भी आश्वस्त था ॥




Wednesday, July 15, 2015

मसाले का डब्बा

आज अनायस ही रसोईघर में रखे मसाले के डब्बे पर दृष्टी चली गयी
जिसे देख मन में जीवन और मसालों के बीच तुलनात्मक विवेचना स्वतः ही आरम्भ हो गयी....
सर्वप्रथम हल्दी के पीत वर्ण रंग देख मन प्रफुल्लित हुआ
जिस तरह एक चुटकी भर हल्दी अपने रंग में रंग देती है
उसी समान अपने प्यार और सोहार्द्य से दुसरो को अपने रंग में रंगने की प्रेरणा
वही अकस्मात मिली... 
श्वेत रंग नमक से सरलता और सादगी का पाठ सीखा
और सीखा उनकी बराबर मात्रा की उपयोगिता
ना तो कम ना ही ज्यादा
और सीखा कभी कभी स्वादानुसार मात्रा का फायदा... 
हरे रंग के धनिये ने भी अपनी उपस्तिथि चरित्रार्थ की
हर स्तिथि में प्रसन्न रहने की कला प्रदान की...
और भी मसाले थे वहां…जिनसे कुछ ना कुछ विशिष्टता ग्रहण की
सहसा मिर्च को देख थोड़ा सकपकाया
द्धेष....ईर्ष्या…घृणा…क्रोध इत्यादि का त्याग तुरंत मष्तिष्क में आया...
अंत में पास में रखे चीनी के डब्बे से जीवन में मिठास घोलने की प्रेरणा लेकर रसोईघर से बाहर आया
धन्यवाद उस मसाले के डब्बे का जिसने मौन रह कर भी बहुमूल्य पाठ पढ़ाया।।

Tuesday, June 30, 2015

रक्त रंग परिवर्तित हुए
सम्बन्ध वही रहे
अनियमित मन पहचानने की कला
वो सदैव समझते रहे
उग्र मन.....शांत स्वभाव
ये विशिष्ट संयोजन
सिर्फ वो ही पढ़ पाये 
लगभग अस्सी हजार क्षणिकाओं पश्चात
आज फिर मेरे जीवन में आये
ठीक वही जहा छोड़ कर गए थे
ठीक उसी रंग रूप में
बस परिवेश बदल गए
और बदल गए कुछ लक्ष्य
आत्मा वही और देह भी वही
बस अंतकरण संरचनाए बदल गयी
वही तेज मुख पटल का देख
दिवा स्वप्नों में खो गए
करने लगे विश्वास पुनर्जन्म पर
जी के मर गए या मर कर जीवित हो गये।

Wednesday, April 1, 2015

हे आकाश||

मैं भी छूना चाहता हूँ उस नीले आकाश को.…
जो मुझे ऊपर से देख रहा है,
अपनी और आकर्षित कर रहा है,
मानों मुझे चिढ़ा रहा हो,
और मैं यहाँ खड़ा होकर…
उसके हर रंग निहार रहा हूँ,
ईर्ष्या भाव से नज़रें  टिका कर,
उसके सारे रंग देख रहा हूँ,
अनेक द्वंद मेरे मन में..... 
कैसे पहुँचु मैं उसके पास एक बार,
वो भी इठला कर, कर रहा है अभिमान,
ये सोचते हुए की, हे आकाश.…
आऊंगा तेरे पास एक दिन,
बैठ कर आमने सामने, करूँगा बात,
दृष्टि नीचे कर आगे की और चल पड़ा मैं.....


Monday, March 2, 2015

होली का त्यौहार 2015

आया होली का त्यौहार,
 ठीक बजट के बाद,
अतिरिक्त सेवा कर का भार ,
पिचकारी और रंगो पर भी पड़ी इसकी मार,

निकला रंगो की दुकान के आगे से मैं,
सोचा चार पांच रंग के गुलाल ही खरीद लूँ ,
अनुमान था भाव का फिर भी भाव सुन स्तब्ध रह गया,
चार पांच रंग के गुलाल का मेरा बजट आधा रह गया,

 पीला लाल और हरा रंग गुलाल ले लिया,
बाकी रंगो को अलविदा कह दिया,
महंगाई की चुनौती और बजट का प्रभाव,
न होने दिया मैंने खुशियों में अभाव,

होली आई.... पकवान बना,
जो भी रंग था खूब लगाया,
पानी भी व्यर्थ न फैलाया,
प्रेम और सदभाव के साथ होली का त्यौहार मनाया ॥


Thursday, August 14, 2014

स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाये !!

एक वर्ष और स्वतंत्रता का.. 
आकर चला गया.. 
महँगाई..भ्रष्टाचार और अनगिनत रेप के बीच, 

इस स्वतंत्र धरती के.. 
खुले आकाश में.. 
दम क्यों घुँट रहा है.. 
बस शरीर जीवित है,

कोई सरकार पर आरोप लगा रहा है.. 
सरकार विपक्ष पर.. 
विपक्ष सरकार की टांग खींच रहा है.. 
और जनता भूखी मर  रही है,

जिन वस्तुओं की जरुरत नहीं है..  
वो सस्ती मिल रही है.. 
और जरुरत की वस्तुऍ.. 
खरीद नहीं पा रहे है,

कठपुतली बन गए हम सब.. 
जो बैठता है कुर्सी पर .. 
वो नचाये जा रहा है,

स्वतंत्र है या गुलाम अभी भी.. 
इसी उलझन के साथ.. 
आप सभी को..  

स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाये !! 

Wednesday, July 9, 2014

स्टॉप लाइन

स्टॉप लाइन के पीछे खड़ा मैं ,
देख रहा हूँ एक एक  को आगे जाता ,
ज़ेब्रा क्रॉसिंग से भी आगे ,
एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ ,
यहाँ भी है लालबत्ती पर ,
आगे से आगे जाकर खड़ा होने की आकांक्षा ,
बड़ी ही विस्मयी है ,
कोई भी व्यक्ति मेरा साथ देने को तैयार नहीं ,
मेरे साथ स्टॉप लाइन के पीछे खड़े रहने को तैयार नहीं ,
इतने में एक व्यक्ति और आया ,
जिसने अपना वाहन मेरे पास रुकाया ,
अब हम दो थे जो आगे लोगो को देख रहे थे ,
हम उन्हें असभ्य समझ रहे थे ,
और वो सब हमें मूर्ख ,
थोड़ी देर में एक बड़ी सी चमचमाती कार रुकी ,
आगे जाकर उसमे बैठे एक व्यक्ति ने कार का दरवाजा खोला ,
एक दम स्त्री किये हुए कपडे,
धुप का चश्मा लगाए हुए उस व्यक्ति ने,
बैठे बैठे पान की पीक,
साफ़ सुथरी सड़क पर थूक दी ,
स्टॉप लाइन के आगे खड़े लोगो से ध्यान हटा ही था ,
कि इस घटना ने मुझे और झकझोर दिया ,
मैंने तुरंत सोचना बंद किया,
और हरी बत्ती होते ही,
सबसे आगे निकल कर,
अपना वाहन भगा ले गया ।।

Saturday, March 22, 2014

हिंदी भाषा


कई दशको पहले
यदि भारत में कुछ ऐसा घट जाता
जिस से ये देश धन सम्पन्न और विकसित बन जाता 
चहुँमुखी विकास के साथ साथ
अन्तराष्ट्रीय व्यापर भी शशक्त हो जाता
और शशक्त हो जाती हिंदी भाषा
भारत में तो चारो और हिंदी बोली जाती
और विदेशी भी हिंदी बोलते हुए आता
लड़खड़ाती हुई हिंदी बोलते हुए जब विदेशी आता
तो मैं भी उपहास बनाता
जैसा आज मेरा उपहास बनाया गया
सिर्फ मेरे टूटी फूटी अँग्रेजी बोलने पर
"हिंदी ही बोला करो" ये अहसास दिलाया
सारी पुस्तकें हिंदी में प्रकाशित की जाती
साक्षात्कार भी हर जगह हिंदी में किया जाता
और विदेशी गानो का प्रारम्भ
हिंदी के शब्दो से किया जाता
विदेशो  में रैपिड हिंदी कोर्स करवाया जाता
भारत में अध्य्यन करने हेतु
हिंदी का जटिल प्रश्न पत्र आता
तब अंग्रेजी बोलने वाले भी हिंदी बोलते
तो उनका  सर गर्व से उठ जाता
तब कही जाकर
सराही जाती अपनी ही मातृभाषा
अंग्रेजी का अधिक ज्ञान नहीं मुझे
लेकिन अच्छी लगती हिंदी भाषा ॥