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Tuesday, October 26, 2021

ओह दिवाली !

आज अवसर मिलते ही अपना स्कूटर उठाया 
और बाहर को निकला
सोचा दिवाली पर कुछ ले आऊं  
जाते जाते 500 रुपये अपने जेब में रख लिए। 

जैसे ही बाहर निकला तो
बाजार में भगदड़ सी मची हुई थी
लोग इधर से उधर भाग रहे थे 
कुछ क्षणों बाद समझ आया 
ये दिवाली की खरीद दारी में लगे हुए है। 

मैं एक दुकान पर रुका 
और नकली फूलो वाली सजावटी बेल का दाम पूछा 
ये तो मेरे पास रखे हुए 500 रूपये से भी ऊपर जा रही थी। 

फिर मैं रौशनी, लाइट और मोमबत्तियों की ओर गया 
लाइट की और मैं आकर्षित हुआ 
और अपने घर के 2 द्वार, छत एवं पूजा घर का हिसाब लगा कर 
घबराती हुई आवाज़ से दुकानदार से लाइटो का दाम पूछा
दाम सुनते ही निराश होकर वो लाइटे वही रख दी
और स्कूटर उठा कर आगे निकल गया। 

किसी ने बताया कि सस्ता सामान कहा मिलेगा
तो मैं वहाँ चला गया 
कुछ दूर चलते चलते एक सजा हुआ बाजार सा दिखा 
मैं तुरंत रुका और अंदर दुकानों की ओर बढ़ा 
आतिशबाज़ीऔर पटाखों का बाजार लग रहा था 
तो सहसा मन में विचार आया कि 
बच्चो के लिए फुलझड़ी, जमीन चक्कर और फव्वारे ही ले चलते है 
अपने मन का तो कुछ आ नहीं रहा इस दाम में 
बच्चे ही खुश हो जायेंगे, 
एक दुकान पर एक रंगीन फव्वारे के डब्बे का दाम पूछा 
दाम सुनते ही, सकपकाते हुए और कुछ बड़बड़ाते हुए मैं 
बाहर की ओर निकल आया। 

ऐसा लगा जैसे किसी ने मुझे बताया 
सिंह साब, ये आप किसी दुनिया में जी रहे हो 
500 रुपये का मतलब 5 रुपये होता है अब 
और आप ना जाने क्या क्या लेने आ गए। 

मुझे भी अहसास हुआ कि 
कोरोना काल में,
मैं कितना पीछे चला गया,
और रुपया कितना आगे चला गया। 

मैंने अपना स्कूटर मोड़ा
200 रूपये का पेट्रोल भराकर 
घर की ओर वापस आ गया
अभी भी अज्ञात हूँ दिवाली पर अब 
300 रूपये में क्या लेकर आऊं। 





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