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Sunday, July 2, 2017

"देवो की महासभा"

फल खरीदने निकला एक दिन मैं, सहसा मेरी दृष्टि एक स्थान पर पड़ी। एक खुले चबूतरे पर सभी देव देवियाँ एकत्रित थे, अपने अपने झुण्ड में कुछ चर्चा करते दिखाई पड़ रहे थे। ध्यान से देखने पर लगा सब परेशान थे, एक दूसरे को अपनी अपनी व्यथा सुना रहे थे।
मैंने गौर से देखा की, विष्णु जी के चारो ओर सभी देवता जर्जर अवस्था में थे, प्राय जिनके नाम मात्र से शुभ कार्य आरम्भ किया जाता है, वो श्री गणेश जी भी विखंडित अवस्था में लेटे हुए थे। वही आगे एक कोने में सभी आम जान को रोजगार देने वाले रोजगारेश्वर महादेव भी घायल स्तिथि में थे।  शनि देव जिनकी शक्ति का परिचय देने की आवशयकता नहीं, वो भी मुँह लटकाये गहन सोच में डूबे हुए थे, मानो उनके साढ़े साती के प्रकोप का भय समाप्त हो चुका हो।
मुझे यह दृश्य समझ नहीं आ रहा था, इसलिए मैं  उनके थोड़ा और निकट गया, तभी वहाँ एक सरकारी ट्रक आकर रुका, उसमे से अति बलशाली श्री हनुमानजी को, दो व्यक्तियों द्वारा लटका कर लाया गया।
वो व्यक्ति विशेष, हनुमान जी  को वहाँ छोड़ कर बड़ी जल्दी से ट्रक लेकर चलते बने। मुझसे देखा ना गया, मैं वहाँ पहुँचा और जैसे तैसे उन्हें दीवार के सिरहाने खड़ा करने में सहायता की। कुछ और लोग वहां एकत्रित हुए जिनसे मुझे ज्ञात हुआ कि शहर के व्यस्ततम चौराहों के मंदिरो से उन्हें निष्कासित किया गया है।
मनुष्य का इतना विकराल रूप देख कर सभी देव घबराए हुए थे, मनुष्यो द्वारा अपने ऊपर हुए इस अत्याचार से हताहत थे। इसलिए सभी देवगणो ने  इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए एक महासभा बुलाई।
तभी वहां सरकारी ट्रक फिर पंहुचा और कुछ देवो को उसमे ले जाया गया, महासभा छिन्न भिन्न हो गयी।
शेष बचे देव मूक दर्शक बने देखते रहे, और मैं भी इस उलझन से बचते हुए, २ क़िग्रा मौसमी लेकर घर लौट आया।

Friday, February 3, 2017

सत्य

जान ले तो सत्य,
मान ले तो असत्य,
ये विचित्र विविधता,
वरन पारदर्शिता,
है अपार आशाएं,
किन्तु अनगिनत निराशाएं,
प्रतिस्पर्धा स्वयं से,
अस्पष्ट निर्वहन से,
अनिश्चित प्रतीक्षा,
अनुमानित कठिनाई समीक्षा,
डटे रहे तो जय,
माने हार तो पराजय,
धैर्य, साहस , परिक्रम का विलय,
अद्भुत विलक्षण सत्य !!

पूरक एक दूसरे के

मूक बधिर सत्य,
स्थिर खड़ा एक कोने में,
बड़े ध्यान से देख रहा है,
सामने चल रही सभा को,
झूठ, अपराध, भ्रष्टाचार इत्यादि,
व्यस्त है अपने कर्मो के बखानो में,
सब एक से बढ़ कर एक,
आंकड़े दर्शा रहे है,
सहसा दृष्टि गयी सामने सत्य की,
सिर झुकाये सोफे पर बैठा,
आत्मसम्मान,
सब कुछ देख सुन कर भी,
मौन है,
सहस्त्र प्रयासों के पश्चात भी,
अहसास ना करा पाया सत्य,
स्वयं की उपस्तिथि का,
देख कर भी अनदेखा कर दिया,
आत्मसम्मान ने,
हुआ करते थे ये कभी,
पूरक एक दूसरे के l

Thursday, February 2, 2017

स्वास्थय

ना मीठा खाने के पहले सोचा करते थे
ना मीठा खाने के बाद....
वो बचपन भी क्या बचपन था
ना डायबिटिक की चिंता
ना कॉलेस्ट्रॉल था...
दो समोसे के बाद भी
एक प्याज़ की कचोरी खा लेते थे..
अब आधे समोसे में भी
तेल ज्यादा लगता है...
मिठाई भी ऐसी लेते है जिसमे मीठा कम हो
और कम नमक वाली नमकीन ढूंढते रहते है...
खूब दौड़ते भागते थे तब
धड़कन ना ज्यादा बढ़ती थी....
अब कुछ थोड़ा अधिक खा भी ले तो
साँसे ऊपर नीचे हो जाती है....
स्वास्थ की रहती चिंता हर समय किन्तु
शारीरिक श्रम का समय ना मिलता है॥





Saturday, December 31, 2016

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये



रास्ते  में मिलिट्री का ट्रक कभी  दिखाई देता है तो प्रायः मैं खड़े होकर सल्यूट कर देता हूँ , बदले में मुझे ट्रक में बैठे हुए सैनिको की मुस्कान देखने को मिलती है।  मेरे इस सामान्य व्यवहार पर राह में चलते हुए कुछ बुद्धिजीवियों की असामान्य प्रतिक्रिया देखने को मिलती है। मुझे ऐसा प्रतीत कराया जाता है मानो कोई मूर्खता पूर्ण हरकत कर दी हो। किन्तु जब किसी अभिनेता के पीछे लाखो लोगो की भीड़ जमा होती है तो इन्हें ये दृश्य सामान्य लगता है। ये विचित्र मनोदशा का उत्तम उदाहरण है। ये दुर्भाग्य की बात ही है कि किसी अभिनेता को कौनसा पुरस्कार कब मिला है, लोगो को अच्छे से याद होता है परंतु किसी सैनिक को कब कोई चक्र या सम्मान कब मिला हो  या मिला भी हो, ये स्मरण शुन्य ही रहता है।  हम "नायक" और "नायक" जैसे समानार्थी शब्दो में अंतर भुला ही बैठे है।
आज ना तो १५ अगस्त है ना शहीद दिवस, बस एक मन विचार आया की हमारे देश के सैनिको को शत शत नमन और नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये।

अंत में आप सभी को मेरी और से नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये । 

Thursday, December 24, 2015

क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाएँ

फुटपाथ पर बैठा दस वर्ष का बच्चा,
बड़े कौतुहल से किसी की प्रतीक्षा कर रहा है

घडी नहीं है उसके पास,
फिर भी एक एक क्षण गिण रहा है

आशा भरे नयनो से,
चारो और देख रहा है

अपना मन पसंद उपहार मिलने की उम्मीद में,
दिन भर से यही संता की बाट जो रहा  है

किसी ने बताया उसको,
की आज संता सबको मन पसंद उपहार दे रहा है

इसलिए अनगिनत क्षणों की गिनती के पश्चात भी,
वो आगे के सारे क्षण गिण रहा है

दिन का आखिरी पहर,
और संता कही दिख नहीं रहा है


धीरे धीरे उसका,
आशान्वित मन उदासी में बदल रहा है

इस बार भी ना आया संता,
और वो अब सर्दी से बचने की व्यवस्था कर रहा है।


क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाएँ ॥

Wednesday, December 2, 2015

स्वच्छता अहम समस्या

हमारी गली सड़क गाँव शहर देश की स्वच्छता एक अहम समस्या है
और लोग इसकी गंभीरता उतनी ही सरलता से लेते है।
आज दूसरो को स्वच्छता पाठ बड़े अच्छे से पढ़ाते है
और कल स्वयं ही गन्दगी फैलाते है।

अपने घर और दरवाज़े के बाहर  गंदगी पसंद ना करने वाले
बड़ी  आसानी से सड़क किनारे कचरा फेंक कर चले आते है,
और पूरा आरोप सिस्टम पर लगाते है।

अपने घर की स्वच्छता का ध्यान है
लेकिन देश की स्वच्छता में योगदान से कतराते है।
देश के विकास की बातें समझने वाले,
घर और देश की समानता  को समझ नहीं पाते।

आश्चर्य है इस मिश्रित स्वाभाव से,
तो मैं अकेला निकल पड़ा हूँ इस स्वच्छता अभियान में !

Friday, July 17, 2015

फिर भी आश्वस्त था

मैं अतिउत्साहित
गंतव्य से कुछ ही दूर था,
वहां पहुचने की ख़ुशी
और जीत की कल्पना में मग्न था,
सहस्त्र योजनाए और अनगिनत इच्छाओ की
एक लम्बी सूची का निर्माण कर चुका था,
सीमित गति और असीमित आकांक्षाओं के साथ
निरंतर चल रहा था,
इतने में समय आया
किन्तु उसने गलत समय बताया,
बंद हो गया अचानक सब कुछ
जो कुछ समय पहले चल रहा था,
निर्जीव हो गया मैं
किन्तु ह्रदय चल रहा था,
चलना प्रारम्भ किया फिर से उस दिशा में
ह्रदय के साथ अब मष्तिष्क भी चल रहा था,
जीत के कुछ पहले मिली हार से ध्वस्त था
फिर भी आश्वस्त था ॥




Wednesday, July 15, 2015

मसाले का डब्बा

आज अनायस ही रसोईघर में रखे मसाले के डब्बे पर दृष्टी चली गयी
जिसे देख मन में जीवन और मसालों के बीच तुलनात्मक विवेचना स्वतः ही आरम्भ हो गयी....
सर्वप्रथम हल्दी के पीत वर्ण रंग देख मन प्रफुल्लित हुआ
जिस तरह एक चुटकी भर हल्दी अपने रंग में रंग देती है
उसी समान अपने प्यार और सोहार्द्य से दुसरो को अपने रंग में रंगने की प्रेरणा
वही अकस्मात मिली... 
श्वेत रंग नमक से सरलता और सादगी का पाठ सीखा
और सीखा उनकी बराबर मात्रा की उपयोगिता
ना तो कम ना ही ज्यादा
और सीखा कभी कभी स्वादानुसार मात्रा का फायदा... 
हरे रंग के धनिये ने भी अपनी उपस्तिथि चरित्रार्थ की
हर स्तिथि में प्रसन्न रहने की कला प्रदान की...
और भी मसाले थे वहां…जिनसे कुछ ना कुछ विशिष्टता ग्रहण की
सहसा मिर्च को देख थोड़ा सकपकाया
द्धेष....ईर्ष्या…घृणा…क्रोध इत्यादि का त्याग तुरंत मष्तिष्क में आया...
अंत में पास में रखे चीनी के डब्बे से जीवन में मिठास घोलने की प्रेरणा लेकर रसोईघर से बाहर आया
धन्यवाद उस मसाले के डब्बे का जिसने मौन रह कर भी बहुमूल्य पाठ पढ़ाया।।

Tuesday, June 30, 2015

रक्त रंग परिवर्तित हुए
सम्बन्ध वही रहे
अनियमित मन पहचानने की कला
वो सदैव समझते रहे
उग्र मन.....शांत स्वभाव
ये विशिष्ट संयोजन
सिर्फ वो ही पढ़ पाये 
लगभग अस्सी हजार क्षणिकाओं पश्चात
आज फिर मेरे जीवन में आये
ठीक वही जहा छोड़ कर गए थे
ठीक उसी रंग रूप में
बस परिवेश बदल गए
और बदल गए कुछ लक्ष्य
आत्मा वही और देह भी वही
बस अंतकरण संरचनाए बदल गयी
वही तेज मुख पटल का देख
दिवा स्वप्नों में खो गए
करने लगे विश्वास पुनर्जन्म पर
जी के मर गए या मर कर जीवित हो गये।