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Wednesday, July 31, 2019

मानवता का अस्तित्व?

अभी कल की ही बात है, मैं गाड़ी पार्क करके निकला ही था बाहर कि एक महिला तुरंत मेरे पास आयी और अंग्रेजी में कुछ फुसफुसाई। मैं सकपका गया, शुरू के 5 -7 क्षण तो मैं समझ ही नहीं पाया कि इन्हे समस्या क्या है। फिर पता चला कि वो यहाँ मुझसे पहले गाड़ी खड़ी करने वाली थी और मैंने उसकी जगह अपनी गाड़ी लगा दी। अंग्रेजी में उन्होंने मुझसे कहा कि मैं बहुत बुरा हूँ, मैंने गलत किया।

सच बताऊँ तो मैं अनभिज्ञ था कि कोई यहाँ गाड़ी पार्क भी करने वाला है। मैंने खाली जगह देखी और गाड़ी लगा दी। और यही बात मैंने उन महिला से भी कही। मैंने उन्हें विनम्रता पूर्वक ये भी कहा कि "मैं हटा देता हूँ यहाँ से अपनी गाड़ी, आप लगा लीजिये।" किन्तु वो कुछ फुसफुसाते हुए या यूँ कहूं कि मुझे कोसते हुए अपनी गाड़ी आगे ले गयी। मुझे बहुत आश्चर्य हुआ कि इतनी सी बात पर वो अपने अहम् को बीच में ले आयी। वहाँ तो बहुत खाली जगह थी गाड़ी पार्क करने की, मैं तो कहीं भी अपनी गाड़ी पार्क कर देता। इस छोटी सी घटना के कारण मेरे कुछ शब्द इस लेख द्वारा बाहर आये जिनकी मैं काफी समय से समीक्षा कर रहा था।
 
धैर्य, शिष्टाचार, मानवता इत्यादि समानार्थक शब्द अब कही देखने को ही नहीं मिलते। सड़क पर हर अगर आप किसी वाहन में हो तो दूसरे कई वाहन आपसे आगे निकलना चाहते है। आपको किसी गली में मुड़ना हो और सामने से कोई दूसरा वाहन आ रहा हो तो वो और भी तेजी से आकर उस गली में मुड़ जाता है। उसका उद्देश्य ही आपको पीछा छोड़ना है।
 
कभी लाल बत्ती पर अपना वाहन रोक कर खड़े होते है तो भी अगला वाहन उस से आगे आकर ही रुकता है।  चाहे एक सूत ही आगे हो किन्तु आगे जाकर ही खड़ा होता है। उस से अगला आने वाला वाहन उस से भी एक कदम आगे। और दृश्य तो पीली बत्ती पर देखिये। एक दूसरे से आगे निकलने के लिए स्टॉप लाइन से भी कही आगे निकल जाते है। एक प्रतिस्पर्धा सी लगी हुई है। जिसकी जानकारी किसी को भी नहीं है, बस एक दूसरे से होड़ किये जा रहे है। 

यदि आपने किसी वाहन को अनजाने में ही सही, पीछे छोड़ दिया वो भी उसके आगे से कट मार के।  तो वो अपनी गाड़ी इतनी तेजी से भगा कर लाता है और आपको घूरता हुआ ऐसे निकलता है जैसे कि आप कोई अपराधी हो और आपको उस गंभीर अपराध के लिए किसी कारागार ले जाया जा रहा हो। और गलती से आपकी गाड़ी, आगे किसी गाड़ी से टकरा गयी तब आप तमाशा देखिये।  बीच सड़क पर गाड़ी रोक कर वो व्यक्ति पहले तो अपने गाड़ी के पिछवाड़े का निरीक्षण करता है। फिर आपके पास बड़े तैश से आता है, गाली गलोच करता है या पैसे मांगता है।  मानवता के धर्म के नाते वो ये भी नहीं पूछता कि "भाई, ठीक तो हो, कहीं लगी तो नहीं।"
इस होड़ की दौड़ में मानवता तो कहीं पीछे रह गयी।  धैर्य तो साहब बचा ही नहीं किसी में।  ऐसे लगता है मानो सब पहलवान बन गए है। बस लड़ना ही मानवता है उनके लिए। 

मैं आपसे ये सब इसलिए साझा कर रहा हूँ की ये दृश्य अब बहुत सामान्य हो गए है। और लुप्त हो गए हमारे संस्कार, शिष्टाचार, धैर्य, मानवता, ये शब्द या तो किसी पुस्तक में मिलते है या इस अभी लेख में मिल रहे है। 
आज किसी की सहायता के लिए हाथ उठना बंद हो गए है किन्तु वीडियो बनाने के लिए ये हाथ बहुत जल्दी उठते है। कभी कोई दुर्घटना घट जाती है तो ये ऐसे ही कुछ लोग वीडियो बनाते हुऐ दिख जाते है, जो अपने वीडियो से बताना तो चाहते है सबको कि ऐसी दुर्घटना घटी है, किन्तु बचाना नहीं चाहते इस दुर्घटना से हताहत लोगो को। 

ये तो भला हो कि चंद लोग ऐसे भी बचे है इस संसार में जिन्होंने हाल ही जे.एल.एन चौराहे (जयपुर) पर हुई दुर्घटना में हताहत व्यक्ति को अपनी समझ से तुरंत सी.पी.आर दिया और अस्पताल तक ले गए। उन देवतुल्य व्यक्तियों को नमन। और विनती है उन लोगो से जो छोटी छोटी बातो पर अपना धैर्य खो देते है, अपने ईगो को प्रेस्टीज पॉइंट बना लेते है, ये सब भुला कर लोगो की सहायता करे और अपने अंदर मानवता को पुनः विकसित करे। मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि आपके डी.एन.ए में ये अवश्य उपस्थित है। 

धन्यवाद

Friday, July 26, 2019

विफलता?

मेरे प्यारे दोस्तों, या यूँ कहूं कि मेरे दसवीं , बारहवीं और प्रतियोगी परीक्षा के अचयनित दोस्तों। ये लेख विर्निदिष्टतः आपके सब के लिए ही लिख रहा हूँ जो किसी परीक्षा में विफल हो जाने पर आत्महत्या जैसे बेतुके विचारो को अपने मष्तिष्क द्वारा आमंत्रित करते है। और कई विद्यार्थी तो इस आमंत्रण को स्वीकार भी कर लेते है और कर देते है अपने बहुमूल्य जीवन का अंत।

तो बन्धुवर, स्पष्टया ऐसा कदाचित ना करे और ना ही करने का प्रयास करे और ना ही ऐसे असंगत विचार अपने मन में लाये। जो लोग विफलता का स्वाद चखते है ना उनमे कई गुणों की भरमार होती है, वो है "सहनशक्ती", "घैर्य" और "साहस" जो की प्रायः सदैव सफल होने वाले लोगो की तुलना में कहीं अधिक होता है। मैं ये तर्क विफल लोगो को मात्र तसल्ली देने के लिए नहीं दे रहा हूँ अपितु ये मैंने स्वयं अनुभव किया है, जिसका उल्लेख मैं आगे करूँगा। 

मैंने किसी पुस्तक में एक सत्य घटना पढ़ी थी वो आपसे साझा करता हूँ - किसी शहर में लड़का रहता था। वो बहुत परिश्रमी था, सदैव अधययनरत रहता था। हर परीक्षा में हमेशा प्रथम आता था। चाहे परीक्षा दसवीं की हो या बारहवीं की या स्नातक की या व्यवसाय प्रबंध की, वो सदैव प्रथम आया परिणामस्वरूप उसकी अच्छे वेतन की नौकरी लगी। जिस से उसने कपडे, मकान, गाड़ी सब कुछ खरीद लिया। फिर उसने अपनी नौकरी से बचाये हुए धन से व्यवसाय शुरू किया, वहां भी उसने खूब मुनाफा कमाया। वो सिर्फ एक चीज़ नहीं कमा पाया वो थी विफलता, जिसका स्वाद उसने अपने जीवन काल में कभी चखा ही नहीं था। एक दिन ऐसा आया की उसे व्यापार में बहुत घाटा हुआ, उसका घरबार, गाड़ी , पैसे सब बिक गया और वो अपने परिवार समेत सड़क पर आ गया। उसमे विफलता की सहनशक्ति इतनी कम हो चुकी थी कि इस सदमे से उसने अपने प्राण त्याग दिए।

तो दोस्तों, विफलता से कभी निराश मत हो, वो हमे समस्याओं के सामने खड़ा रहना सिखाती है। वो जब मिलती है तो लगती बहुत बुरी है किन्तु वो अनुभव दे जाती है। जीवन जीने का सबक दे जाती है। सच मानो तो सफलता से कही अधिक महत्वपूर्ण होती है विफलता। 
अब इसका ये अर्थ बिलकुल नहीं है कि आप परिश्रम करना छोड़ दे। कही आप ये सोच कर प्रसन्न हो जाए कि विफलता से तो कितना कुछ मिल रहा है, हमे तो विफल ही होना चाहिए। नहीं, ये तर्क प्रासंगिक नहीं है। आपको निरंतर मेहनत करते रहना है, जो भी लक्ष्य आपने तय किया है वहां तक पहुंचना ही है। ये बीच में यदि विफलता मिल रही है तो ये आपको कुछ ना कुछ सिखाने मात्र के लिए है। इस से सबक लो और अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ो। बस ये आत्माहत्या जैसे दुर्बल शब्दों का प्रयोग बिलकुल ना करे। 

निसंदेह, लक्ष्य पाना बहुत कठिन होता है और कठिन का अर्थ आसान नहीं होता। समस्याए आएगी-जायेगी किन्तु महत्वपूर्ण है निरंतर मेहनत करते रहना। मैं आपको अपना अनुभव बताता हूँ।

मैं कक्षा दसवीं में हो गया फेल। उसके बाद मेरे घर, रिश्तेदारों, पड़ोसियों में आग की तरह ये खबर फैल गयी कि सिंह साब का लड़का दसवीं में फेल हो गया। कई तरह के ताने मुझे मारे गए। मुझे ये अहसास दिलाया गया की मैं नालायक, नाकारा लड़का हूँ जो अब अपने जीवन में कुछ नहीं कर पाऊँगा। मेरे मन में कई विचार आये कि मै घर छोड़ कर भाग जाऊँ या छत से कूद जाऊं। सम्भवतया मैं ये कर भी लेता किन्तु उस समय मैंने कही सुन लिया की जो होता है अच्छे के लिए ही होता है। हालांकि मुझे पता था कि दसवीं में फेल होने से बुरा क्या हो सकता है किन्तु मैंने उस प्रसंग के कारण आत्महत्या का विचार त्याग दिया और पुनः दसवीं की परीक्षा की तैयारी में लग गया। और खूब मेहनत की।
मजे की बात ये रही की मैं फर्स्ट डिवीज़न उत्तीर्ण हुआ। जिन लोगो ने मुझे ताने मारे थे उनके मुँह स्वतः ही बंद थे। लोगो ने तो ये तक कह दिया था कि इसको पढ़ाई बंद करवा दो, कुछ मजदूरी करवा लो, घर में २ पैसे ही लाएगा। तो आज मैं अपने इस लेख के माध्यम से बताना चाह रहा हूँ कि चार पैसे घर ला रहा हूँ। जो की ताने मारने वालो के अनुमान से दुगुनी राशि है।
फेल होने से जीवन समाप्त नहीं हो जाता। व्यक्ति अपने जीवन कुछ न कुछ तो अवश्य कर ही लेता है बशर्ते वो हिम्मत कभी ना हारे। किन्तु सबसे महत्वपूर्ण बात है निरंतर मेहनत, इसके बिना इस लेख का भी कोई औचित्य नहीं है।
आज मैं अपने परिवार के साथ सुखी जीवन व्यतीत कर रहा हूँ, १ बच्चा और २ पत्नियों के साथ। क्षमा चाहूंगा २ बच्चे और १ पत्नी के साथ। माता जी, पिताजी, दादाजी, दादी जी सब ही तो है घर में। सबके साथ मिलकर अच्छे से जीवन जी रहे है।

दोस्तों ये जीवन बहुत ही खूबसूरत है और कई उतार चढ़ाव से सुसज्जित है। समस्याओ का आना, उनसे लड़ना, और उन पर विजय पाना, मन को बहुत आनंदित करता है। समस्याओ से लड़ के उन्हें दूर भगाने के पश्चात् जो सुख की प्राप्ति होती है वो अद्भुत है और यही जीवन है। इसे दसवीं या बारहवीं या किसी भी परीक्षा की टुच्ची (असभ्य भाषा प्रयोग के लिए क्षमा) सी समस्या के लिए अपने जीवन का समापन करना मूर्खता ही है। गिरो तो उठ जाओ। फिर गिरो तो फिर उठ जाओ। बहुत ही सरल धारणा है। मेरा विशवास करो मित्रों, बहुत अच्छा होगा आपका जीवन यदि आप कही विफल भी होते हो तो भी। मैं प्रत्याभूति देता हूँ इस बात की। 

एक छोटा सा वृत्तांत बता कर लेख समाप्त करूँगा, एक बार एक व्यक्ति ने एक फल का वृक्ष लगाया। उसे सींचा और बड़ा किया। कुछ समय बाद उसमे फल लगने शुरू हुए। उस व्यक्ति ने उसे तोड़ कर खाया तो वो बेहद कड़वा था। अब उसने वृक्ष को कोसना शुरू कर दिया कि इतने वर्षो तक बड़ी मेहनत से इस वृक्ष को बड़ा किया और फल भी कड़वे निकले। कुछ राहगीरों ने भी फल चखे जो कि कड़वे निकले। वो भी इस वृक्ष को कोस कर चलते बने। वृक्ष बेचारा बहुत निराश हुआ और अवसाद में चला गया। उसने आत्महत्या करने की ठानी किन्तु वो इतना विवश था कि ना तो फंदे से लटक सकता था और ना ही किसी छत से कूद सकता था। ये विचार उसने त्याग दिया और सिर्फ धैर्य रखा। कुछ समय बाद उसने अपने फलो को पका कर स्वतः ही नीचे गिराना प्रारम्भ किया। वो व्यक्ति नीचे गिरे हुए फलो को देख कर फिर आया। उसने फल को चखा तो वो अब अत्यंत मीठे निकले। उसे बड़ा अफ़सोस हुआ की उसने अकारण ही वृक्ष को इतना भला बुरा कहा।

अब ये बात समझने योग्य है कि हर व्यक्ति विशेष, पेड़ पोधो ,प्रकृति इत्यादि का नियम होता है कि उन्हें अपने निर्धारित समय पर ही फल मिलता है वो भी मीठा। हर व्यक्ति विशेष होता है उसे अंको के आधार पर नहीं माप सकते। जो लोग अंको के आधार पर किसी व्यक्ति के नैतिक मूल्यों को नापते है और उसी क्षण उनके भविष्य की घोषणा कर देते है। बहुत ही बौनी मानसिकता वाले लोग होते है जिन्हे जीवन का सही अर्थ ही नहीं पता होता। हर व्यक्ति में एक अनूठा कौशल होता है, बस वही परखने की आवशयकता है। विफलता का हल आत्महत्या करना नहीं है अपितु ये है कि इस बार आप दुगुनी तैयारी से समस्या से लड़ने को निपुण है। 

मेरा ये लेख संभवतः मेरे दोस्तों तक सीधे तौर पर ना पहुंच पाए तो उनके परिजनों, मित्रो या सम्बन्धियों से अनुरोध है कि अपने बच्चो को ये लेख अवश्य पढ़ाये। यही कामना करूँगा की इस लेख से उनको या विद्यार्थीयो को और सम्बल मिले और विफलता मिलने के उपरांत भी वे अधिक से अधिक परिश्रम करके अपने लक्ष्य को प्राप्त करे।

शुभकामनाएं

Tuesday, July 9, 2019

भगवान के साथ संवाद - वाद विवाद

एक दिन रास्ते में मुझे एक वृद्ध महिला ने सहायता के लिए पुकारा। मैंने उनकी सड़क पार करने में सहायता की और साथ ही उन्हें खाने के लिए कुछ पैसे दिए।  उन वृद्ध महिला के ढेरो आशीर्वाद लेकर मैं मुड़ा ही था कि मेरे इष्टदेव मेरे समक्ष प्रकट हुए । एक बार को मैं खड़ा स्तब्ध रह गया फिर मैंने उनसे कहा "हे बजरंग बली, मैं धन्य हुआ जो आपके दर्शन हुए "। वे बोले की "ये तेरे अच्छे कर्म का परिणाम है", बोल क्या चाहिए तुझे, क्या समस्या है, अभी निवारण करता हूँ। मुझे कुछ समझ नहीं आया की उनसे क्या माँगू, सहसा एक बात दिमाग में आयी जो बहुत सालो से मेरे दिमाग में थी, वो मैंने उनके समक्ष रख दी।

मैंने कहा "हे पवन पुत्र हनुमान, आपने मुझे २ पुत्रिया दी है, क्या आप मुझे एक पुत्री और एक पुत्र का सुख नहीं दे सकते थे।  क्यों मुझे एक पुत्र के सुख से वंचित रखा"। बजरंग बली कुछ देर मौन रहे, फिर बोले कि "तू चल मेरे साथ श्री राम के पास वो ही तेरे इस प्रश्न का उत्तर देंगे"।

वो मुझे कुछ दूर एक छोटे से मकान में ले गए और मुझे बाहर खड़े होने को कहा।  मैं मन ही मन प्रसन्न हो रहा था कि एक तो मुझे मेरे इष्ट देव के दर्शन करने का सौभाग्य मिला और दूसरा मेरे प्रश्न के कारण भगवन श्री राम से मिलने का अवसर मिल रहा है। थोड़ी ही देर में मुझे अंदर से कुछ आवाज़ आयी।  ऐसा प्रतीत हुआ कि हनुमान जी, श्री राम को मेरा परिचय कुछ गलत ढंग से दे रहे थे। वे श्री राम से बोल रहे थे कि "प्रभु बाहर एक बहुत ही निर्लज वयक्ति खड़ा है जो एक लड़का और लड़की में भेद को लेकर कुंठित है।  मैंने उसके अच्छे कर्मो के बदले उसे दर्शन दिए और वो मुझे अपने अनर्गल प्रश्न से भ्रमित कर रहा है। इसलिए ही मैं उसे आपके पास ले आया"।

श्री राम ने उन्हें मुझे अंदर लाने के आदेश दिए। हनुमान जी बाहर आये और अपनी चढ़ी हुई भौंहों से मुझे अंदर आने का संकेत दिया।  हनुमान जी ने श्री राम के पास जाकर कहा "प्रभु यही है वो" और उनके पास हाथ बांध कर खड़े हो गए। श्री राम ने मेरी ओर देखा और कहा बोलो क्या बात है। मैंने उन्हें प्रणाम किया और अपना प्रश्न दोहरा दिया। श्री राम बोले "देखो, आज के युग में एक लड़के और लड़की में भेद करना मूर्खता है। दोनों में कोई अंतर नहीं है, अगर लड़का तेज है तो लड़की सरलता। लड़का अगर वंश आग्रहक है तो लड़की वंश रक्षक। दोनों ही एक समान है, उनमे कोई अंतर नहीं है"।

मैं श्री राम जी की बातें बड़े ध्यान से सुन रहा था। उनकी बात सुनने के बाद मैंने उनसे कहा "हे प्रभु इसमें कोई संशय नहीं कि इन दोनों में कोई अंतर नहीं अपितु एक बेटी अपने परिवार को बहुत ज्यादा स्नेह करती है किन्तु श्री राम अभी कल की ही बात है कि मेरी बेटी के स्कूल का एक ऑटो चालक मेरी बेटी को बड़ी आपत्तिजनक दृष्टि से देख रहा था और मेरी दृष्टि जब उस पर पड़ी तो वो सकपका गया और ऑटो तेजी से चला कर भाग गया।

मैं पूरे दिन सोचता रहा कि ये आज के युग में क्या हो रहा है जो खबरें अख़बार में पढ़ते थे वो इतनी आम हो गयी कि घर घर में किसी के साथ कुछ भी गलत घट सकता है। मैं इतना हतप्रभ हुआ और अपनी बेटी के लिए सुरक्षा का अभाव महसूस हुआ। बस इसी सुरक्षा की दृष्टि से एक पुत्र की कामना की ताकि मेरे बाद वो अपनी बहिन की रक्षा कर सके और मैं चिंतामुक्त हो पाता।  इसलिए आपके सामने ये प्रश्न पूछने की हिम्मत कर पाया"।

मैं वहा रुका नहीं, अपने अंदर जितना भी गुस्सा था वो अपने शब्दों से निकालना चाह रहा था। मैंने आगे कहा

"हे प्रभु, आज के समय में कही भी लड़किया सुरक्षित नहीं है।  उनकी अस्मिता छीनी जा रही है। बरसो से पली बढ़ी लड़कियों का चंद मिनिटो में बलात्कार कर दिया जाता है। चाहे रोडवेज की बस हो या कोई प्राइवेट टैक्सी। कही कोई सुरक्षित नहीं है।  लड़की चाहे इक्कीस बरस की हो या चार बरस की उन्हें हर स्थान पर वासना का शिकार बनाया जा रहा है। पता नहीं ये जीवाणु, विषाणु, कीटाणु जैसे विषैले तत्त्व कहा से उत्पन्न हो रहे है जो इन लड़किया की असुरक्षा के प्रमाण पत्र को सत्यापित कर रहे है। इनके लिए कही से भी किसी कीटनाशक का प्रबंध करवाओ प्रभु। ऊपर से हमारी न्याय व्यवस्था कोई कठोर कदम नहीं... "
मेरा इतना कहना ही था कि श्री राम ने मुझे बीच में ही रोक कर एक गहरी सांस ली और गंभीर मुद्रा में कुछ सोच कर बोलने ही वाले थे कि मेरी आँख खुल गयी। बिना उत्तर मिले मेरे प्रश्न अधूरे रह गए और मैं फिर से भगवान के स्वपन में आने की प्रतीक्षा कर रहा हूँ।







Sunday, July 2, 2017

"देवो की महासभा"

फल खरीदने निकला एक दिन मैं, सहसा मेरी दृष्टि एक स्थान पर पड़ी। एक खुले चबूतरे पर सभी देव देवियाँ एकत्रित थे, अपने अपने झुण्ड में कुछ चर्चा करते दिखाई पड़ रहे थे। ध्यान से देखने पर लगा सब परेशान थे, एक दूसरे को अपनी अपनी व्यथा सुना रहे थे।
मैंने गौर से देखा की, विष्णु जी के चारो ओर सभी देवता जर्जर अवस्था में थे, प्राय जिनके नाम मात्र से शुभ कार्य आरम्भ किया जाता है, वो श्री गणेश जी भी विखंडित अवस्था में लेटे हुए थे। वही आगे एक कोने में सभी आम जान को रोजगार देने वाले रोजगारेश्वर महादेव भी घायल स्तिथि में थे।  शनि देव जिनकी शक्ति का परिचय देने की आवशयकता नहीं, वो भी मुँह लटकाये गहन सोच में डूबे हुए थे, मानो उनके साढ़े साती के प्रकोप का भय समाप्त हो चुका हो।
मुझे यह दृश्य समझ नहीं आ रहा था, इसलिए मैं  उनके थोड़ा और निकट गया, तभी वहाँ एक सरकारी ट्रक आकर रुका, उसमे से अति बलशाली श्री हनुमानजी को, दो व्यक्तियों द्वारा लटका कर लाया गया।
वो व्यक्ति विशेष, हनुमान जी  को वहाँ छोड़ कर बड़ी जल्दी से ट्रक लेकर चलते बने। मुझसे देखा ना गया, मैं वहाँ पहुँचा और जैसे तैसे उन्हें दीवार के सिरहाने खड़ा करने में सहायता की। कुछ और लोग वहां एकत्रित हुए जिनसे मुझे ज्ञात हुआ कि शहर के व्यस्ततम चौराहों के मंदिरो से उन्हें निष्कासित किया गया है।
मनुष्य का इतना विकराल रूप देख कर सभी देव घबराए हुए थे, मनुष्यो द्वारा अपने ऊपर हुए इस अत्याचार से हताहत थे। इसलिए सभी देवगणो ने  इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए एक महासभा बुलाई।
तभी वहां सरकारी ट्रक फिर पंहुचा और कुछ देवो को उसमे ले जाया गया, महासभा छिन्न भिन्न हो गयी।
शेष बचे देव मूक दर्शक बने देखते रहे, और मैं भी इस उलझन से बचते हुए, २ क़िग्रा मौसमी लेकर घर लौट आया।

Friday, February 3, 2017

सत्य

जान ले तो सत्य,
मान ले तो असत्य,
ये विचित्र विविधता,
वरन पारदर्शिता,
है अपार आशाएं,
किन्तु अनगिनत निराशाएं,
प्रतिस्पर्धा स्वयं से,
अस्पष्ट निर्वहन से,
अनिश्चित प्रतीक्षा,
अनुमानित कठिनाई समीक्षा,
डटे रहे तो जय,
माने हार तो पराजय,
धैर्य, साहस , परिक्रम का विलय,
अद्भुत विलक्षण सत्य !!

पूरक एक दूसरे के

मूक बधिर सत्य,
स्थिर खड़ा एक कोने में,
बड़े ध्यान से देख रहा है,
सामने चल रही सभा को,
झूठ, अपराध, भ्रष्टाचार इत्यादि,
व्यस्त है अपने कर्मो के बखानो में,
सब एक से बढ़ कर एक,
आंकड़े दर्शा रहे है,
सहसा दृष्टि गयी सामने सत्य की,
सिर झुकाये सोफे पर बैठा,
आत्मसम्मान,
सब कुछ देख सुन कर भी,
मौन है,
सहस्त्र प्रयासों के पश्चात भी,
अहसास ना करा पाया सत्य,
स्वयं की उपस्तिथि का,
देख कर भी अनदेखा कर दिया,
आत्मसम्मान ने,
हुआ करते थे ये कभी,
पूरक एक दूसरे के l

Thursday, February 2, 2017

स्वास्थय

ना मीठा खाने के पहले सोचा करते थे
ना मीठा खाने के बाद....
वो बचपन भी क्या बचपन था
ना डायबिटिक की चिंता
ना कॉलेस्ट्रॉल था...
दो समोसे के बाद भी
एक प्याज़ की कचोरी खा लेते थे..
अब आधे समोसे में भी
तेल ज्यादा लगता है...
मिठाई भी ऐसी लेते है जिसमे मीठा कम हो
और कम नमक वाली नमकीन ढूंढते रहते है...
खूब दौड़ते भागते थे तब
धड़कन ना ज्यादा बढ़ती थी....
अब कुछ थोड़ा अधिक खा भी ले तो
साँसे ऊपर नीचे हो जाती है....
स्वास्थ की रहती चिंता हर समय किन्तु
शारीरिक श्रम का समय ना मिलता है॥





Saturday, December 31, 2016

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये



रास्ते  में मिलिट्री का ट्रक कभी  दिखाई देता है तो प्रायः मैं खड़े होकर सल्यूट कर देता हूँ , बदले में मुझे ट्रक में बैठे हुए सैनिको की मुस्कान देखने को मिलती है।  मेरे इस सामान्य व्यवहार पर राह में चलते हुए कुछ बुद्धिजीवियों की असामान्य प्रतिक्रिया देखने को मिलती है। मुझे ऐसा प्रतीत कराया जाता है मानो कोई मूर्खता पूर्ण हरकत कर दी हो। किन्तु जब किसी अभिनेता के पीछे लाखो लोगो की भीड़ जमा होती है तो इन्हें ये दृश्य सामान्य लगता है। ये विचित्र मनोदशा का उत्तम उदाहरण है। ये दुर्भाग्य की बात ही है कि किसी अभिनेता को कौनसा पुरस्कार कब मिला है, लोगो को अच्छे से याद होता है परंतु किसी सैनिक को कब कोई चक्र या सम्मान कब मिला हो  या मिला भी हो, ये स्मरण शुन्य ही रहता है।  हम "नायक" और "नायक" जैसे समानार्थी शब्दो में अंतर भुला ही बैठे है।
आज ना तो १५ अगस्त है ना शहीद दिवस, बस एक मन विचार आया की हमारे देश के सैनिको को शत शत नमन और नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये।

अंत में आप सभी को मेरी और से नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये । 

Thursday, December 24, 2015

क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाएँ

फुटपाथ पर बैठा दस वर्ष का बच्चा,
बड़े कौतुहल से किसी की प्रतीक्षा कर रहा है

घडी नहीं है उसके पास,
फिर भी एक एक क्षण गिण रहा है

आशा भरे नयनो से,
चारो और देख रहा है

अपना मन पसंद उपहार मिलने की उम्मीद में,
दिन भर से यही संता की बाट जो रहा  है

किसी ने बताया उसको,
की आज संता सबको मन पसंद उपहार दे रहा है

इसलिए अनगिनत क्षणों की गिनती के पश्चात भी,
वो आगे के सारे क्षण गिण रहा है

दिन का आखिरी पहर,
और संता कही दिख नहीं रहा है


धीरे धीरे उसका,
आशान्वित मन उदासी में बदल रहा है

इस बार भी ना आया संता,
और वो अब सर्दी से बचने की व्यवस्था कर रहा है।


क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाएँ ॥

Wednesday, December 2, 2015

स्वच्छता अहम समस्या

हमारी गली सड़क गाँव शहर देश की स्वच्छता एक अहम समस्या है
और लोग इसकी गंभीरता उतनी ही सरलता से लेते है।
आज दूसरो को स्वच्छता पाठ बड़े अच्छे से पढ़ाते है
और कल स्वयं ही गन्दगी फैलाते है।

अपने घर और दरवाज़े के बाहर  गंदगी पसंद ना करने वाले
बड़ी  आसानी से सड़क किनारे कचरा फेंक कर चले आते है,
और पूरा आरोप सिस्टम पर लगाते है।

अपने घर की स्वच्छता का ध्यान है
लेकिन देश की स्वच्छता में योगदान से कतराते है।
देश के विकास की बातें समझने वाले,
घर और देश की समानता  को समझ नहीं पाते।

आश्चर्य है इस मिश्रित स्वाभाव से,
तो मैं अकेला निकल पड़ा हूँ इस स्वच्छता अभियान में !