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Thursday, September 29, 2011

"स्नेहा"

प्रयासों की भीड़ से,
एक प्रयास ऐसा भी,
जो पंहुचा अपने गंतव्य
के एकदम नज़दीक,
गंतव्य ने उसे देखा भी,
परखा भी,
फिर भी रोके रखा
कुछ दूर,
कभी उसे निहारता,
तो कभी मुह फेर लेता,
गंतव्य की ये पहेली,
बड़ी विचित्र है,
ना वो जानता है ना पहचानता है,
फिर भी समझता है,
ये गंतव्य भी विचित्र है,
दूर करके भी सहायता करता है,
और मैं तत्पर खड़ा हूँ,
लेने इसकी स्नेहा!!

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