मेरे प्यारे दोस्तों, या यूँ कहूं कि मेरे दसवीं , बारहवीं और प्रतियोगी परीक्षा के अचयनित दोस्तों। ये लेख विर्निदिष्टतः आपके सब के लिए ही लिख रहा हूँ जो किसी परीक्षा में विफल हो जाने पर आत्महत्या जैसे बेतुके विचारो को अपने मष्तिष्क द्वारा आमंत्रित करते है। और कई विद्यार्थी तो इस आमंत्रण को स्वीकार भी कर लेते है और कर देते है अपने बहुमूल्य जीवन का अंत।
तो बन्धुवर, स्पष्टया ऐसा कदाचित ना करे और ना ही करने का प्रयास करे और ना ही ऐसे असंगत विचार अपने मन में लाये। जो लोग विफलता का स्वाद चखते है ना उनमे कई गुणों की भरमार होती है, वो है "सहनशक्ती", "घैर्य" और "साहस" जो की प्रायः सदैव सफल होने वाले लोगो की तुलना में कहीं अधिक होता है। मैं ये तर्क विफल लोगो को मात्र तसल्ली देने के लिए नहीं दे रहा हूँ अपितु ये मैंने स्वयं अनुभव किया है, जिसका उल्लेख मैं आगे करूँगा।
मैंने किसी पुस्तक में एक सत्य घटना पढ़ी थी वो आपसे साझा करता हूँ - किसी शहर में लड़का रहता था। वो बहुत परिश्रमी था, सदैव अधययनरत रहता था। हर परीक्षा में हमेशा प्रथम आता था। चाहे परीक्षा दसवीं की हो या बारहवीं की या स्नातक की या व्यवसाय प्रबंध की, वो सदैव प्रथम आया परिणामस्वरूप उसकी अच्छे वेतन की नौकरी लगी। जिस से उसने कपडे, मकान, गाड़ी सब कुछ खरीद लिया। फिर उसने अपनी नौकरी से बचाये हुए धन से व्यवसाय शुरू किया, वहां भी उसने खूब मुनाफा कमाया। वो सिर्फ एक चीज़ नहीं कमा पाया वो थी विफलता, जिसका स्वाद उसने अपने जीवन काल में कभी चखा ही नहीं था। एक दिन ऐसा आया की उसे व्यापार में बहुत घाटा हुआ, उसका घरबार, गाड़ी , पैसे सब बिक गया और वो अपने परिवार समेत सड़क पर आ गया। उसमे विफलता की सहनशक्ति इतनी कम हो चुकी थी कि इस सदमे से उसने अपने प्राण त्याग दिए।
तो दोस्तों, विफलता से कभी निराश मत हो, वो हमे समस्याओं के सामने खड़ा रहना सिखाती है। वो जब मिलती है तो लगती बहुत बुरी है किन्तु वो अनुभव दे जाती है। जीवन जीने का सबक दे जाती है। सच मानो तो सफलता से कही अधिक महत्वपूर्ण होती है विफलता।
अब इसका ये अर्थ बिलकुल नहीं है कि आप परिश्रम करना छोड़ दे। कही आप ये सोच कर प्रसन्न हो जाए कि विफलता से तो कितना कुछ मिल रहा है, हमे तो विफल ही होना चाहिए। नहीं, ये तर्क प्रासंगिक नहीं है। आपको निरंतर मेहनत करते रहना है, जो भी लक्ष्य आपने तय किया है वहां तक पहुंचना ही है। ये बीच में यदि विफलता मिल रही है तो ये आपको कुछ ना कुछ सिखाने मात्र के लिए है। इस से सबक लो और अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ो। बस ये आत्माहत्या जैसे दुर्बल शब्दों का प्रयोग बिलकुल ना करे।
निसंदेह, लक्ष्य पाना बहुत कठिन होता है और कठिन का अर्थ आसान नहीं होता। समस्याए आएगी-जायेगी किन्तु महत्वपूर्ण है निरंतर मेहनत करते रहना। मैं आपको अपना अनुभव बताता हूँ।
मैं कक्षा दसवीं में हो गया फेल। उसके बाद मेरे घर, रिश्तेदारों, पड़ोसियों में आग की तरह ये खबर फैल गयी कि सिंह साब का लड़का दसवीं में फेल हो गया। कई तरह के ताने मुझे मारे गए। मुझे ये अहसास दिलाया गया की मैं नालायक, नाकारा लड़का हूँ जो अब अपने जीवन में कुछ नहीं कर पाऊँगा। मेरे मन में कई विचार आये कि मै घर छोड़ कर भाग जाऊँ या छत से कूद जाऊं। सम्भवतया मैं ये कर भी लेता किन्तु उस समय मैंने कही सुन लिया की जो होता है अच्छे के लिए ही होता है। हालांकि मुझे पता था कि दसवीं में फेल होने से बुरा क्या हो सकता है किन्तु मैंने उस प्रसंग के कारण आत्महत्या का विचार त्याग दिया और पुनः दसवीं की परीक्षा की तैयारी में लग गया। और खूब मेहनत की।
मजे की बात ये रही की मैं फर्स्ट डिवीज़न उत्तीर्ण हुआ। जिन लोगो ने मुझे ताने मारे थे उनके मुँह स्वतः ही बंद थे। लोगो ने तो ये तक कह दिया था कि इसको पढ़ाई बंद करवा दो, कुछ मजदूरी करवा लो, घर में २ पैसे ही लाएगा। तो आज मैं अपने इस लेख के माध्यम से बताना चाह रहा हूँ कि चार पैसे घर ला रहा हूँ। जो की ताने मारने वालो के अनुमान से दुगुनी राशि है।
फेल होने से जीवन समाप्त नहीं हो जाता। व्यक्ति अपने जीवन कुछ न कुछ तो अवश्य कर ही लेता है बशर्ते वो हिम्मत कभी ना हारे। किन्तु सबसे महत्वपूर्ण बात है निरंतर मेहनत, इसके बिना इस लेख का भी कोई औचित्य नहीं है।
आज मैं अपने परिवार के साथ सुखी जीवन व्यतीत कर रहा हूँ, १ बच्चा और २ पत्नियों के साथ। क्षमा चाहूंगा २ बच्चे और १ पत्नी के साथ। माता जी, पिताजी, दादाजी, दादी जी सब ही तो है घर में। सबके साथ मिलकर अच्छे से जीवन जी रहे है।
दोस्तों ये जीवन बहुत ही खूबसूरत है और कई उतार चढ़ाव से सुसज्जित है। समस्याओ का आना, उनसे लड़ना, और उन पर विजय पाना, मन को बहुत आनंदित करता है। समस्याओ से लड़ के उन्हें दूर भगाने के पश्चात् जो सुख की प्राप्ति होती है वो अद्भुत है और यही जीवन है। इसे दसवीं या बारहवीं या किसी भी परीक्षा की टुच्ची (असभ्य भाषा प्रयोग के लिए क्षमा) सी समस्या के लिए अपने जीवन का समापन करना मूर्खता ही है। गिरो तो उठ जाओ। फिर गिरो तो फिर उठ जाओ। बहुत ही सरल धारणा है। मेरा विशवास करो मित्रों, बहुत अच्छा होगा आपका जीवन यदि आप कही विफल भी होते हो तो भी। मैं प्रत्याभूति देता हूँ इस बात की।
एक छोटा सा वृत्तांत बता कर लेख समाप्त करूँगा, एक बार एक व्यक्ति ने एक फल का वृक्ष लगाया। उसे सींचा और बड़ा किया। कुछ समय बाद उसमे फल लगने शुरू हुए। उस व्यक्ति ने उसे तोड़ कर खाया तो वो बेहद कड़वा था। अब उसने वृक्ष को कोसना शुरू कर दिया कि इतने वर्षो तक बड़ी मेहनत से इस वृक्ष को बड़ा किया और फल भी कड़वे निकले। कुछ राहगीरों ने भी फल चखे जो कि कड़वे निकले। वो भी इस वृक्ष को कोस कर चलते बने। वृक्ष बेचारा बहुत निराश हुआ और अवसाद में चला गया। उसने आत्महत्या करने की ठानी किन्तु वो इतना विवश था कि ना तो फंदे से लटक सकता था और ना ही किसी छत से कूद सकता था। ये विचार उसने त्याग दिया और सिर्फ धैर्य रखा। कुछ समय बाद उसने अपने फलो को पका कर स्वतः ही नीचे गिराना प्रारम्भ किया। वो व्यक्ति नीचे गिरे हुए फलो को देख कर फिर आया। उसने फल को चखा तो वो अब अत्यंत मीठे निकले। उसे बड़ा अफ़सोस हुआ की उसने अकारण ही वृक्ष को इतना भला बुरा कहा।
अब ये बात समझने योग्य है कि हर व्यक्ति विशेष, पेड़ पोधो ,प्रकृति इत्यादि का नियम होता है कि उन्हें अपने निर्धारित समय पर ही फल मिलता है वो भी मीठा। हर व्यक्ति विशेष होता है उसे अंको के आधार पर नहीं माप सकते। जो लोग अंको के आधार पर किसी व्यक्ति के नैतिक मूल्यों को नापते है और उसी क्षण उनके भविष्य की घोषणा कर देते है। बहुत ही बौनी मानसिकता वाले लोग होते है जिन्हे जीवन का सही अर्थ ही नहीं पता होता। हर व्यक्ति में एक अनूठा कौशल होता है, बस वही परखने की आवशयकता है। विफलता का हल आत्महत्या करना नहीं है अपितु ये है कि इस बार आप दुगुनी तैयारी से समस्या से लड़ने को निपुण है।
मेरा ये लेख संभवतः मेरे दोस्तों तक सीधे तौर पर ना पहुंच पाए तो उनके परिजनों, मित्रो या सम्बन्धियों से अनुरोध है कि अपने बच्चो को ये लेख अवश्य पढ़ाये। यही कामना करूँगा की इस लेख से उनको या विद्यार्थीयो को और सम्बल मिले और विफलता मिलने के उपरांत भी वे अधिक से अधिक परिश्रम करके अपने लक्ष्य को प्राप्त करे।
शुभकामनाएं