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Monday, June 10, 2013

प्रतीक्षा की समय सीमा

मेरी प्रतीक्षा की समय सीमा और आगे चली गयी है ...
जो  पहले से ही आगे चल रही थी ..
अब आँखों से ओझल हो गयी है….
मैं उसके पीछे चल रहा हूँ ...
बेसुध ..बेखबर ...
आत्मा की उमंग .. जो जीवित थी ..
वो भी देह त्यागने के निकट है…
एक भय का वातावरण सा ..
जो निरंतर डरा रहा है  ...
समय सीमा आगे निकलने का अहसास दिला रहा है ..
आँखे सूखी और बेजान है ..
ह्रदय सिसकियाँ भर रहा है ...
समय भी दुगुनी धीमी गति से चल रहा है ..
मेरी प्रतीक्षा की समय सीमा आगे चली गयी है…
और मैं यहाँ जीवित खड़ा हूँ।।

Monday, February 18, 2013

क्या पता ?

हज़ारो दर्द का अहसास, लेकिन तकलीफ जरा भी नहीं,
आँखों में आंसू , लेकिन चेहरे पर हँसी ,
अजीब सी दुविधा , असामान्य असमंजस ,
लोग जो तमाशबीन  है, हो रहे है हैरान,
उनमे से कुछ परेशान, और कुछ के दिमाग में सवाल,
इस परिवर्तन से मैं भी अनभिज्ञ ...अनजान,
जो अभी अभी हुआ है,
अचानक ही दर्द का अहसास,
ना जाने कहाँ चला गया ..सहसा,
मैं देख रहा हु खड़ा हुआ ..सहमा ,
क्या ये मेरी जीत के संकेत है,
या हार की अत्याधिक्ता,
कौतुहल मन,
स्वयं से अनेक प्रश्न,
क्यों आसान लग रहा है आज जीना,
क्यों नहीं लग रहा है रोज का मरना,
क्यों मुश्किलें अपनी सी लग रही है,
क्यों अपनी ख़ुशी दूर लग रही है ,
क्यों नहीं कर रहा है मन जीतने का ,
क्या हार से लगाव हो गया ,
विस्मित मन से,
क्या पता,
जी रहा हु,
या
मर रहा हु,
क्या पता ? 
  

   

Friday, December 21, 2012

दुःख से साक्षात्कार


बहुत दिन हो गए दुःख को यहाँ आये,
जमाना बीत गया यहाँ पैर फैलाये,
सोचा आज कर ही लेते है दुःख से साक्षात्कार ,
पूछ लेते है क्या है इसके आगे के विचार ,
हमने पूछा दुःख से थोडा घबरा कर ,
वो भी सहम गया हमे अपने पास पाकर ,
आजकल काफी पहचाने जा रहे हो ,
महंगाई ,गरीबी, गैंगरेप आदि विषयो से चर्चा में आ रहे हो ...
दुःख चोंका, फिर  सहमा, और मुंह फिरा कर धीरे से बोला ...
मुझे पालने पोसने, बड़ा करने में आप लोगो का भी योगदान है ...
और उसके पीछे आप लोगो के  अपरिवर्तनीय परिवर्तन और संकीर्ण सोच का श्रमदान है।।।
मैं स्वयं नहीं चाहता हूँ यहाँ रहना, जाना चाहता हूँ अपने घर ...
लेकिन सरकार  ने मेरे जाने पर लगा दी रोक और मुझे लिया धर ...
कई बार की कोशिश मैंने भागने की ,
सारी ताकत लगा दी उन्हॊने मुझे वापस लाने की ,
मैं फिर यहाँ रह गया ,
मेरा सौतेला भाई सुख भी देखता रह गया ,
दुःख की व्यथा सुन कर हम चुप हो गए ,
और इस तरह हम दुःख के दोस्त हो गए ।।

Tuesday, July 3, 2012

"इस रिक्त जीवन में, करने को बहुत कुछ है"

रिक्त ह्रदय रिक्त मन,
संपूर्ण संसार,
निरंतर कोशिश,
जिंदा रहने की,
एक प्रतिस्पर्धा,
स्वयं से,
स्वयं तक पहुचने की,
आसमान ओझल,
सुनसान भीड़,
हारे तो जीत,
जीते तो हार,
अजीब असमंजस,
मौत की कल्पना,
जीने का बोझ,
इस रिक्त जीवन में,
करने को बहुत कुछ है ॥

सीढियों पर किस्मत बैठी थी..

सीढियों पर किस्मत बैठी थी..
ना जाने किसका इंतज़ार कर रही थी..
उससे देख एक पल मैं खुश हुआ..
और पास जाकर पूछा..
क्या मेरा इंतज़ार कर रही हो...
उसने बिना कुछ बोले मुहँ फेर लिया..
दो तीन बार मैंने और प्रयास किया..
पर वो मुझसे कुछ ना बोली...
मैं समझ गया ये किसी और के लिए यहाँ बैठी है..
इस बार मैंने कोशिश की उससे रिझाने की..
अपना बनाने की...
उसने पलट कर देखा पर कुछ कहा नहीं..
एक विचित्र सी फ़िल्मी स्तिथि थी..
मैं उसे अपना बनाना चाहता था और,
वो किसी और की होना चाहती थी...
मैं भी वही बैठा रहा..
उससे अपना बनाने की युक्तियासुझाते रहा..
कुछ क्षण के लिए मेरी आँख लग गयी..
और किस्मत आँखों से ओझल हो गयी..
मैंने बहुत अफ़सोस मनाया और मायूसी से उठा..
इतने में किसी ने बताया..
मुझे कोई पूछ रहा था..
अपना नाम कुछ "क़" से बताया था..
उसने बहुत देर इंतज़ार किया मेरा..
और चला गया..
और अब मैं विवश बैठा हु सीढियों पर..
अगले कदम की योजना बना रहा हुं...

Monday, June 18, 2012

ना जाने मेरी ख़ुशी कहां उदास होकर बैठी है..

बात उन दिनों की है, जब ख़ुशी मेरे साथ रहती थी,
न कोई समस्या न कोई चिंता रहती थी...
हम दोनों साथ साथ समय बिताते थे..
कभी आपस में रुठते तो कभी मनाते थे..
इसी तरह जीवन बिताते थे,,
इतना गहरा नाता था,
आँख खोलता तो ख़ुशी थी,
आँख बन्द करता तो ख़ुशी थी,
सोता तो ख़ुशी थी,
रोता तो ख़ुशी थी,
हँसता तो ख़ुशी थी ही..
एक दिन किसी बात से उस से नाराज़ होकर सोया था..
उठ कर देखा तो ख़ुशी नहीं थी..
मैंने उससे बहुत ढुढां..
बाहर बरामदे में देखा..
पास गलियारे में ढुढां..
दूर चौराहे तक देख कर आया..
पर वो कही नहीं मिली...
अँधेरा होने तक ढूंढ्ता रहा..
ना जाने कहा चली गयी थी वो..
पहली बार उस अँधेरे से डर लग रहा था..
जिसे कभी डराया करता था..
सुबह भी हुई,पर अँधेरा ही लग रहा था...
डर वैसा ही था..
आज भी वैसा ही है..
ना जाने मेरी ख़ुशी कहां उदास होकर बैठी है...

Monday, February 20, 2012

मेघा

रात के बाद फिर रात हुई...
ना बादल गरजे न बरसात हुई..
बंजर भूमि फिर हताश हुई..
शिकायत करती हुई आसमान को..
संवेग के साथ फिर निराश हुई..
कितनी रात बीत गयी..
पर सुबह ना हुई..
कितनी आस टूट गयी..
पर सुबह ना हुई..
ना जला चूल्हा, ना रोटी बनी..
प्यास भी थक कर चुपचाप हुई..
निराशा के धरातल पर ही थी आशा..
की एक बूँद गिरी पेरों पर..
बूँद तो आँखों से ही गिरी थी..
लेकिन इस रात की सुबह हुई थी..
और कुछ यूँ बरसी मेघा...

Thursday, September 29, 2011

"स्नेहा"

प्रयासों की भीड़ से,
एक प्रयास ऐसा भी,
जो पंहुचा अपने गंतव्य
के एकदम नज़दीक,
गंतव्य ने उसे देखा भी,
परखा भी,
फिर भी रोके रखा
कुछ दूर,
कभी उसे निहारता,
तो कभी मुह फेर लेता,
गंतव्य की ये पहेली,
बड़ी विचित्र है,
ना वो जानता है ना पहचानता है,
फिर भी समझता है,
ये गंतव्य भी विचित्र है,
दूर करके भी सहायता करता है,
और मैं तत्पर खड़ा हूँ,
लेने इसकी स्नेहा!!

Friday, September 9, 2011

"किस्मत"

एक दिन के लिए मुझे तेरी किस्मत दे दे,
मैं भी बनना चाहता हूँ चमकता सितारा,
मैं भी भागना चाहता हूँ एक अलग वर्ग की दौड़ में,
चढ़ना चाहता हूँ वो सीढ़िया, जिनके
मैंने सिर्फ सपने देखे थे,
उसी विश्वास के साथ चढ़ना चाहता हूँ,
एक दिन के लिए मुझे तेरी किस्मत दे दे,
ये वादा है मेरा लौटा दूंगा मैं वापस तेरी किस्मत,
आंच भी ना आएगी तू घबरा मत,
हज़ारो ख्वाहिशे खड़ी है इस बंद दरवाज़े के पीछे,
जिसकी चाबी सिर्फ पास है तेरे,
खोल दे दरवाज़ा आने दे बाहर इन्हें,
बाहर आकर एक बार पूरा होने का मौका दे इन्हें,
एक दिन के लिए मुझे तेरी किस्मत दे दे,
एक दिन के लिए मुझे तेरी किस्मत दे दे!

"रुक जा वापस आ ना"

रुक जा, मत जा,
कितना चीखा, कितना चिल्लाया,
रोया भी, पर वो न रुका,
आवाज़ भी नहीं सुनी,
कितना भागा, कितनी बार गिरा,
उठा, संभला, फिर भागा,
रातो जागा पर वो ना रुका,
सारी कोशिशे, सारे प्रयास,
साम, दाम, दंड, भेद,
सब विफल हुआ निराश,
यही सोच,एक अंतिम प्रयास,
किया इन्जार, पर वो ना रुका,
विश्वास भी दिलाया,वादा भी किया,
उसने कहा मुझे क्यों भागता है,
क्यों चीखता है,अब मैं जा चुका हूँ,
वापस ना आने के लिए,
लेकिन मैं फिर एक बार,
भागता हूँ....
अंतिम प्रयास सोच कर,
फिर भी, वो ना रुका,
अब मैं समझ गया हूँ,
विश्वास सिर्फ एक बार,
वादा सिर्फ एक बार,
फिर भी दुबारा दिलाने की,
कोशिश में, मैं...
भागता रहूँगा!