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Tuesday, October 26, 2021

ओह दिवाली !

आज अवसर मिलते ही अपना स्कूटर उठाया 
और बाहर को निकला
सोचा दिवाली पर कुछ ले आऊं  
जाते जाते 500 रुपये अपने जेब में रख लिए। 

जैसे ही बाहर निकला तो
बाजार में भगदड़ सी मची हुई थी
लोग इधर से उधर भाग रहे थे 
कुछ क्षणों बाद समझ आया 
ये दिवाली की खरीद दारी में लगे हुए है। 

मैं एक दुकान पर रुका 
और नकली फूलो वाली सजावटी बेल का दाम पूछा 
ये तो मेरे पास रखे हुए 500 रूपये से भी ऊपर जा रही थी। 

फिर मैं रौशनी, लाइट और मोमबत्तियों की ओर गया 
लाइट की और मैं आकर्षित हुआ 
और अपने घर के 2 द्वार, छत एवं पूजा घर का हिसाब लगा कर 
घबराती हुई आवाज़ से दुकानदार से लाइटो का दाम पूछा
दाम सुनते ही निराश होकर वो लाइटे वही रख दी
और स्कूटर उठा कर आगे निकल गया। 

किसी ने बताया कि सस्ता सामान कहा मिलेगा
तो मैं वहाँ चला गया 
कुछ दूर चलते चलते एक सजा हुआ बाजार सा दिखा 
मैं तुरंत रुका और अंदर दुकानों की ओर बढ़ा 
आतिशबाज़ीऔर पटाखों का बाजार लग रहा था 
तो सहसा मन में विचार आया कि 
बच्चो के लिए फुलझड़ी, जमीन चक्कर और फव्वारे ही ले चलते है 
अपने मन का तो कुछ आ नहीं रहा इस दाम में 
बच्चे ही खुश हो जायेंगे, 
एक दुकान पर एक रंगीन फव्वारे के डब्बे का दाम पूछा 
दाम सुनते ही, सकपकाते हुए और कुछ बड़बड़ाते हुए मैं 
बाहर की ओर निकल आया। 

ऐसा लगा जैसे किसी ने मुझे बताया 
सिंह साब, ये आप किसी दुनिया में जी रहे हो 
500 रुपये का मतलब 5 रुपये होता है अब 
और आप ना जाने क्या क्या लेने आ गए। 

मुझे भी अहसास हुआ कि 
कोरोना काल में,
मैं कितना पीछे चला गया,
और रुपया कितना आगे चला गया। 

मैंने अपना स्कूटर मोड़ा
200 रूपये का पेट्रोल भराकर 
घर की ओर वापस आ गया
अभी भी अज्ञात हूँ दिवाली पर अब 
300 रूपये में क्या लेकर आऊं। 





Wednesday, May 5, 2021

कोरोना

कोरोना वहां इठला कर खड़ा है,

और यहाँ धैर्य, साहस और विश्वास की मंत्रणा चल रही है। 

धैर्य बोला, थक गया मैं इस से लड़ लड़ के,

वापस आ जाता है, ये दुगुनी शक्ति से। 

धैर्य की बात सुनकर, साहस भी धीमे स्वर से बोला,

दुर्बल हो गया हूँ मैं भी, इसकी विविध शक्तियाँ देख कर,

इतना धैर्य रख रख कर, मेरा भी साहस कम हो गया है,

साहस के साथ धैर्य भी, इसके आगे नत मस्तक हो गया है। 


विश्वास, इतने समय से मौन खड़ा था,

धैर्य और साहस का वार्तालाप बड़े ही गौर से सुन रहा था,

सहसा उसने धैर्य और साहस का हाथ पकड़ कर जोर से झुंझलाया,

और ऊँचे स्वर में बोला, मुझे विश्वास है तुम दोनों पर,

तुम क्यों नहीं रखते विश्वास मुझ पर,

अरे कठिन समय में, दुर्बल परस्तिथियो में,

तुम दोनों की ही तो मिसाल दी जाती है,

कोई भी जंग तुम दोनों की उपस्तिथि में ही लड़ी जाती है,

क्यों थक कर बैठ गए तुम,

क्यों हार मान कर बैठ गए तुम,

अपने विशवास के स्तर को ऊपर ले जाओ, 

और अपने अंदर इतना मनोबल बढ़ाओ,

की कोरोना पर विजय की पताका लहराओ,

धैर्य, साहस और विश्वास, अब सब एक हो जाओ,

और इस कोरोना महामारी को मार भगाओ। 


जय हिन्द। 





 

Tuesday, May 4, 2021

कोविड - 19

चारों ओर से आती हुई एम्बुलेंस की धुँधली आवाज़ें भी,
हर बार कुछ क्षण के लिए ह्रदय की धड़कने बढ़ा जाती है,

मष्तिष्क किसी तरह ह्रदय को संभालता है,
और ह्रदय फिर फेफड़ो की चिंता में डगमगाता है,

ऑक्सीमीटर में ऑक्सीजन स्तर जांचने के बाद ही,
सुकून की सांस ले पाता हूँ,

टीवी पर ऑक्सीजन सप्लाई की कमी को लेकर,
आ रही खबरों से कई बार संकुचित हो जाता हूँ,
सहसा सांसो में तकलीफ सी होती है,
और घबराहट बढ़ जाती है,

तुरंत पेट के बल लेट जाता हूँ,
कुछ सांसो का व्यायाम करके,
गरम वाष्प लेने लग जाता हूँ,
ऑक्सीमीटर में ऑक्सीजन का स्तर मापता हूँ,
और रीडिंग अठानवे आते ही अपने आप को शांत रख पता हूँ,

चार-पांच वर्षो में भगवान को याद करने वाला मैं,
उन्हें दिन में चार-पांच बार याद कर जाता हूँ,
उनसे क्षमा मांग, उनके सुमिरण में लग जाता हूँ,
उनका पाठ कर अपने रिश्ते सबल बनाता हूँ,

इस विपदा की घड़ी में, मैं ना जाने कितनी बार घबराता हूँ,
लेकिन प्रत्येक दिन मैं स्वयं को पहले से मजबूत पाता हूँ,

कुछ भी हो किन्तु इस आपदा ने मुझे शिक्षित किया,
अपने शरीर का ध्यान रखना सिखाया,
अपने इष्ट से मिलाया, 
धैर्य रखना सिखाया, 
हिम्मत ना हारना सिखाया,
लोगो की सहायता करना सिखाया,
विश्वास करना सिखाया,
मैं कर रहा हूँ, आप भी करें,
घबराये नहीं, साथ मिल मिलकर इससे लड़े। 





 


 




Wednesday, August 7, 2019

तमाशा बना रखा है एक जीव का

बहुत तेज़ बारिश  हो रही थी। करण ने अपनी कार सड़क के किनारे खड़ी कर दी और अपने दोस्त वसीम को फ़ोन लगाया। उसने फ़ोन पर कहाँ "8 बजने वाले है, जल्दी से ले आ नहीं तो दुकानें बंद हो जाएगी। इतना मस्त मौसम हो रहा है, जल्दी आ और सतीश को भी फ़ोन कर दे, कहर ढायेंगे आज तो ।" इतना बोल कर करण ने फ़ोन रख दिया और एक सिगरेट निकाल कर पीने लगा। 
थोड़ी देर में सतीश और वसीम एक टैक्सी से वहां पहुंचे और करण की कार में बैठ गए। उन तीनो ने वहां बैठ कर शराब पीनी शुरू की। तभी वहां से पुलिस की एक जीप निकल कर गयी, सतीश ने डरते हुए कहा "यार, करण कहीं पुलिस का ध्यान यहाँ ना पड़ जाए, जल्दी से ख़तम करके निकलते है।" करण ने बड़ी बेबाकी से जवाब दिया "अरे, तू डर मत, इन सबको मैं संभाल लूंगा। मेरा बाप बहुत पैसे छोड़ कर गया है।  वो कब काम आएंगे।  ये पैसा सबका मुँह बंद कर देता है भाई।" ये बोल कर तीनो ठहाके लगा कर हंसने लगे।
जब तीनो मद्यमय थे तभी करण को बाहर एक लड़की अपनी स्कूटी को पैदल घसीटते दिखाई दी। करण ने अपने दोनों दोस्तों का ध्यान उस लड़की की ओर दिलाया और बोला "आज तो सही में कहर ढायेंगे दोस्तों, शराब के साथ कुछ शबाब भी होना चाहिए।" उसके दोस्त सतीश ने कहां "अरे छोड़ यार, क्यों बिना वजह झमेला खड़ा कर रहा है।" करण ने सतीश की तरफ देख कर कहां "अबे, तू क्यों डर रहा है, मैं तो पहले भी कई बार ऐसे रस्ते चलते कइयों को लपेट चुका हूँ, आज तो मुझे दशक पूरा करना है अपना।" वसीम भी करण के साथ सहमत था। उन दोनों के दबाव में आकर सतीश भी सहमत हो गया। 
तीनो अपनी कार से बाहर निकले और उस लड़की की सहायता करने के बहाने उस से बात की। लड़की उन तीनो को देखते ही सारी स्तिथि भांप गयी और अपनी स्कूटी उनके ऊपर पटक कर भागने लगी। किन्तु वसीम ने उसे पीछे से पकड़ लिया और करण ने उसके मुँह पर हाथ रख दिया। सतीश की मदद से वो तीनो उस लड़की उठा कर अपनी कार में ले आये। 

तीन महीने बीत चुके थे। करण अपने प्रॉपर्टी  के काम में व्यस्त था और उसके दोनों दोस्त अपने अपने काम से दूसरे शहर बस चुके थे।  करण की वही दिनचर्या रहती थी। भू माफिया का काम करना और रात में शराब पार्टी करना।  पिछले कुछ समय से उसके पेट में अजीब सा दर्द रहता था। रात को ज्यादा शराब पीने की वजह से सुबह उसका हैंगओवर होता था। उल्टिया होती थी और मन बैचैन रहने लगा था। उसने कई बार सोचा कि किसी डॉक्टर से परामर्श कर ले किन्तु अपने व्यसनों की वजह से उसे अपने स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रहता था। अब कुछ समय और निकला उसके पेट में अजीब सा दर्द बढ़ा और साथ में पेट का आकार भी। अब उसे यकीन हो गया था कि ये कोई अल्सर की गाँठ है जो समय के साथ बढे जा रही है। इस बार उसने डॉक्टर से परामर्श किया। डॉक्टर ने उसे कुछ जांचे करवाने को कहा।  उसने अपनी सभी जांचे करवाई और रिपोर्ट्स डॉक्टर को दिखाने गया। 
डॉक्टर ने जैसे ही सोनोग्राफी की रिपोर्ट देखी और सतब्ध रह गया।  करण ने डॉक्टर के माथे का पसीना देख कर जोर से पूछा "मुझे क्या हुआ है डॉक्टर।" डॉक्टर ने उसकी तरफ देख कर कहा "ये कैसे हो सकता है।" करण ने घबरा कर डॉक्टर से पूछा "आखिर मुझे हुआ क्या है डॉक्टर साब", डॉक्टर ने कहा "तुम्हारे पेट में 5 महीने का गर्भ पल रहा है।" ये सुन कर करण भौंचक्का रह गया। डॉक्टर ने आगे कहा कि "ये वैज्ञानिक तर्क से बिलकुल परे है। तुम्हारी और जांचे की जाएगी। तुम्हे बड़े अस्पताल में भर्ती करके इस अप्राकृतिक संयोग की जाँचे की जाएगी।" डॉक्टर का इतना बोलना था कि करण मेज पर पड़ी अपनी रिपोर्ट्स लेकर वहां से भाग गया। 
करण सीधे अपने घर पर आकर रुका। अपने बिस्तर पर लेट कर वो बहुत रोया और सोचने लगा ये कैसे हो सकता है। कही डॉक्टर से कोई गलती तो नहीं हो गयी या कोई रिपोर्ट्स बदल गयी। अपने बढ़े हुए पेट को बार बार छू कर समझने की कोशिश करता रहा।  उसे अब अपनी पिछली सारी गलत कृत्य एक एक करके याद आने लगे।  किसी बुजुर्ग का घर छीन लिया।  कितनी लड़कियों की आबरू छीन ली। 
अचानक उसे याद आया की बारिश की एक रात में उसने अपने दो दोस्तों के साथ एक लड़की को ज़बरदस्ती उठाकर उसके साथ बलात्कार किया था। और वो इतना निर्दयी हो गया था कि अपने बलात्कार के दसवे क्रमांक को सेलिब्रेट करने के लिए उस लड़की का अपहरण करके दस दिन तक उस से रोज बलात्कार करता रहा। उसे तरह तरह की यातनाये दी। उस लड़की की यौन अंग में शराब की बोतल तक डाल दी।  उस लड़की के शरीर पर सिगरेट की राख से जख्म दिए। और उसके बाद लड़की को जंगल में कूड़े के ढेर की तरह फेंक आया।

अब करण जी को अपने किये पर पछतावा होने लगा। उसे लगने लगा कि ये उसके बुरे कर्मो के फल है। उसने तुरंत अपने दोस्त सतीश को फ़ोन लगाया जो कि उसकी पत्नी ने उठाया और सतीश के बारे में जानकारी दी कि वो किसी दूसरे शहर गए है। उसने अपने दूसरे दोस्त वसीम को फ़ोन किया और उसके हालचाल पूछे तो उसने बताया कि वो ठीक है और अपने काम काज में व्यस्त है।
अब करण को डर लगने लगा कि अगर सही में उसके पेट में गर्भ है तो वो शर्म से ही मर जाएगा, दुनिया का सामना कैसे करेगा। उस दिन वो सो नहीं पाया और रात भर डर में रहा।  उसने सोचा कि वो किसी और डॉक्टर से परामर्श करेगा। उसके दिमाग में हज़ारो ख़याल आने लगे। इस अप्राकृतिक घटना पर उसे आश्चर्य भी हो रहा था और पछतावा भी। अब उसे समझ नहीं आ रहा था कि जब ये बात खुलेगी तो किस किस के मुँह बंद करेगा। क्योकि पैसे से मुँह बंद करना तो उसकी आदत थी। 
अगले दिन सुबह वो अपने किसी दोस्त के जानकार डॉक्टर से परामर्श कराने पंहुचा। डॉक्टर ने उसकी सारी रिपोर्ट्स देखी और उसे समझाया ये बहुत ही दुर्लभ परिस्तिथि में ऐसा हुआ है। किसी विशिष्ट हार्मोन वाली लड़की के साथ बार बार सम्बन्ध बनाने की वजह से ऐसा हुआ। अब उसके मन में जो शंका थी वो यकीन में बदल गयी थी कि ये उसी लड़की के साथ किये गए बलात्कार का परिणाम है। उसे याद आया कि उसके साथ तो उसके दोस्तों ने भी बलात्कार किया था किन्तु उन्हें तो ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।
कुछ दिनों करण बहुत तनाव में रहा और एक दिन उसने अपने आप को फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली।
उसके घर पुलिस आयी, पोस्टमार्टम हुआ तो सारी बात दुनिया के सामने आ गयी। टीवी न्यूज़ चैनल और अख़बार में ये अनहोनी खबर सुर्खियों में थी। 
एक डाकिये ने जब ये खबर पढ़ी तो वो अख़बार लेकर अपने घर पंहुचा और ये विचित्र खबर उस लड़की को सुनाई जिसे वो 5 महीने पहले लगभग मृत अवस्था में जंगल से उठा कर लाया था। उसका इलाज करवाया किन्तु वो लड़की कोमा में चली गयी थी। उस लड़की  की आँखें तो खुली रहती थी किन्तु ना तो वो सुन पाती थी और ना बोल पाती थी। वो डाकिया उस लड़की को कई खबरे और कहानिया अक्सर सुनाया करता था ताकि वो लड़की  किसी बात का तो जवाब दे। इसलिए ये खबर भी डाकिये ने उस लड़की को सुनाई।  लेकिन इस बार उस लड़की ने कुछ बुदबुदाया।  डाकिये के चेहरे पर प्रसन्नता की लहार दौड़ आयी। इतने महीनो बाद आज इस लड़की ने  बोलना चाहा।  उस लड़की ने डाकिये से धीमे स्वर में बोलै "बाबा, अभी ऐसी २ खबरे और आना बाकी है।"
लड़की ने उस डाकिये को सारी बात बतायी और ये भी बताया कि "कोमा में जाने बाद भी ऐसा कोई दिन नहीं गया जब मैंने भगवान् से प्रार्थना नहीं की हो कि उन तीनो के साथ भी कुछ ऐसा हो जिस से उन्हें एक लड़की दर्द का पता चले। एक लड़की की मनोस्तिथि पता चले। मैंने बिलकुल यही माँगा था भगवान् से, उन्हें यही सजा दे।कितनी शर्म का सामना करना पड़ता है जब बलात्कार जैसी कोई घटना किसी लड़की के साथ घट जाती है।  उनका खुद का समाज, उनके सगे सम्बन्धी तक उन्हें अशुद्ध मान कर अस्वीकार करते है।  कोई अपनाने को तैयार नहीं होता।  और उनके माँ बाप का क्या हाल होता है, जब वो ऐसी घटना अपनी बच्ची के बारे में सुनते है।  कलेजा फट जाता है उन लोगो का, बाबा। ऐसे लड़को के लिए बहुत आसान होता है, किसी भी लड़की का बलात्कार करना। कोई डर ही नहीं बचा उन लोगो में। अपने पैसे, शराब और वासना के नशे में चूर ऐसे लड़के कभी भी, किसी भी समय ये कुकृत्य  कर देते है। आज मन कर रहा है, चलो बलात्कार कर  देते है।  इस लड़की ने दोस्ती के लिए मना कर दिया, चलो बलात्कार कर देते है।  आज मौसम अच्छा है, बारिश हो रही है, चलो बलात्कार कर  देते है।  जिस दिन इनके पेट में गर्भ धारण होगा ना तब समझेंगे ये कुछ ऐसी घटिया मानसिकता वाले लड़के।
इतने महीने की चुप्पी तोड़ने के बाद उस लड़की ने इतना बोला कि उस डाकिये के पास बोलने को कोई शब्द नहीं बचे थे। वो बस उन २ आत्महत्या की खबरों की प्रतीक्षा कर रहा था। जो कुछ समय बाद उसे मिल भी गयी। सतीश और वसीम ने भी करण की तरह इस बात को छुपाने की कोशिश की किन्तु वो अपने आप से, अपने कुकृत्य से, अपने बुरे कर्मो से हार गए थे। 

अनुलेख:  ये कहानी पूर्णतया काल्पनिक और आधारहीन है। किन्तु जिस प्रकार हर दिन सैकड़ो रेप हो रहे है तो ऐसे निराधार प्रसंग मन में आना स्वाभाविक है। अख़बार में हर दिन ये बलात्कार की खबर आती है। तमाशा बना रखा है एक जीव का।




Wednesday, July 31, 2019

टाइम क्या हुआ है भाई

समय के प्याले में,
जीवन परोसा जा रहा है,
अतिथियों का जमघट लगा है,
रौशनी झिलमिला रही है,
अरे, बुरी किस्मत जी भी आयी है,
लगता है, कुछ बिन बुलाये,
अतिथि भी आये है,
आये नहीं, जिनकी प्रतीक्षा है,
स्वयं प्यालो को,
विशेष अतिथि के रूप में,
कई लोगो का निमंत्रण था,
रात के दस बज चुके है,
आया नहीं अभी कोई उनमे से,
बाकि अतिथि आनंद ले रहे है,
जश्न का, एक और प्याले से,

ओह हो, लगता है, प्रवेश हुआ,
किसी विशेष अतिथि का,
चमचमाती कार से उतरती हुई,
झिलमिलाती साड़ी में "किस्मत" अंदर आयी,
और आते ही एक प्याले की ली,
सिर्फ एक चुस्की,
और चली गयी,
प्यालो का जश्न वही समाप्त हुआ,
और बाकी अतिथियो का जश्न,
अब भी चल रहा है,
इतने में एक प्याला चिल्लाया,
टाइम क्या हुआ है भाई। 

सफलता

बस कुछ ही दूर थी सफलता,
दिखाई दे रही थी स्पष्ट,
मेरा प्रिय मित्र मन,
प्रफुल्लित था,
तेज़ प्रकाश में,
दृश्य मनोरम था,
श्वास अपनी गति से चल रहा था,

क्षणिक कुछ हलचल हुई,
पैर डगमगाया,
सामने अँधेरा छा गया,
सँभलने की कोशिश की,
किन्तु गिरने से ना रोक पाया अपने आप को,
ना जाने कौन था,
जो धकेल कर आगे चला गया,
कुछ ही क्षणों में वो ओझल हो गया,
और मैं वही बैठा रह गया,

मेरा एक और मित्र प्रयास आया,
उसने मुझे उठाने का प्रयत्न किया,
किन्तु मैं वही बैठा रहा,
समस्या, जिससे मेरा दूर का नाता था,
उसने भी मेरा भरपूर साथ निभाया,
कुछ पश्चात् थक हार कर,
प्रयास चला गया,

और प्रकट हुई असफलता,
काले चेहरे वाली,
डरावनी सी,
आगे हाथ बढ़ाती हुई,
मेरे सामने आयी,
मैं डरा और सहमा बैठा रहा,
मेरे बाकी साथी हिम्मत और विश्वास भी,
कही दिखायी नहीं दे रहे थे,

ना जाने मेरे गिरते ही,
कहाँ चले गए थे,
मैंने ढूंढा भी नहीं,
और भयभीत होता रहा,

फिर कुछ देर मन से बात की,
हिम्मत, मेरा मित्र लौट आया,
उसने मुझे ढांढस बंधाया,
और मैंने उठने के लिए,
असफलता का हाथ थामा,
इस बार मैं उसके काले चेहरे से,
बिलकुल नहीं डरा,
और हिम्मत के साथ उठा,
मेरे उठते ही मेरा एक और मित्र,
विश्वास, लौट आया,
एक बार फिर मैं इन सब मित्रो के साथ,
निकल पड़ा, तलाशने,
चाहे कितनी ही दूर चली जाए,
कभी तो हाथ आएगी,
सफलता।


 


युद्ध तो होना ही है

निष्पक्ष न्याय की आशा...
विपक्ष अत्यंत दृढ़ एवं कठोर,
दुर्बल आशाओं का सामना...
सबल कल्पनाओं से।

घमासान निसंदेह दर्शनीय...
पूर्णतः पूर्वानुमानित,
किन्तु युद्ध तो होना ही है,
पक्ष विपक्ष रण में,
आमने सामने जो है।

ना कोई विचार विमर्श...
ना कोई संधि,
मुर्झायी सी धवल पताका,
सबकी दृष्टि से परे,
ना जाने क्या संकेत दे रही है,
और किसे दे रही है ,
अपने आप में खोयी हुई सी,
किन्तु युद्ध तो होना ही है।

तैयार खड़े आशाओं के महारथी...
लिए हाथ में अस्त्र शस्त्र,
सैनिक वीर कल्पनाओ के भी,
इरादे बुलंद,
प्रतीक्षा है,
समय के संकेत की,
जो अभी थमा हुआ है,
किन्तु युद्ध तो होना ही है।




मानवता का अस्तित्व?

अभी कल की ही बात है, मैं गाड़ी पार्क करके निकला ही था बाहर कि एक महिला तुरंत मेरे पास आयी और अंग्रेजी में कुछ फुसफुसाई। मैं सकपका गया, शुरू के 5 -7 क्षण तो मैं समझ ही नहीं पाया कि इन्हे समस्या क्या है। फिर पता चला कि वो यहाँ मुझसे पहले गाड़ी खड़ी करने वाली थी और मैंने उसकी जगह अपनी गाड़ी लगा दी। अंग्रेजी में उन्होंने मुझसे कहा कि मैं बहुत बुरा हूँ, मैंने गलत किया।

सच बताऊँ तो मैं अनभिज्ञ था कि कोई यहाँ गाड़ी पार्क भी करने वाला है। मैंने खाली जगह देखी और गाड़ी लगा दी। और यही बात मैंने उन महिला से भी कही। मैंने उन्हें विनम्रता पूर्वक ये भी कहा कि "मैं हटा देता हूँ यहाँ से अपनी गाड़ी, आप लगा लीजिये।" किन्तु वो कुछ फुसफुसाते हुए या यूँ कहूं कि मुझे कोसते हुए अपनी गाड़ी आगे ले गयी। मुझे बहुत आश्चर्य हुआ कि इतनी सी बात पर वो अपने अहम् को बीच में ले आयी। वहाँ तो बहुत खाली जगह थी गाड़ी पार्क करने की, मैं तो कहीं भी अपनी गाड़ी पार्क कर देता। इस छोटी सी घटना के कारण मेरे कुछ शब्द इस लेख द्वारा बाहर आये जिनकी मैं काफी समय से समीक्षा कर रहा था।
 
धैर्य, शिष्टाचार, मानवता इत्यादि समानार्थक शब्द अब कही देखने को ही नहीं मिलते। सड़क पर हर अगर आप किसी वाहन में हो तो दूसरे कई वाहन आपसे आगे निकलना चाहते है। आपको किसी गली में मुड़ना हो और सामने से कोई दूसरा वाहन आ रहा हो तो वो और भी तेजी से आकर उस गली में मुड़ जाता है। उसका उद्देश्य ही आपको पीछा छोड़ना है।
 
कभी लाल बत्ती पर अपना वाहन रोक कर खड़े होते है तो भी अगला वाहन उस से आगे आकर ही रुकता है।  चाहे एक सूत ही आगे हो किन्तु आगे जाकर ही खड़ा होता है। उस से अगला आने वाला वाहन उस से भी एक कदम आगे। और दृश्य तो पीली बत्ती पर देखिये। एक दूसरे से आगे निकलने के लिए स्टॉप लाइन से भी कही आगे निकल जाते है। एक प्रतिस्पर्धा सी लगी हुई है। जिसकी जानकारी किसी को भी नहीं है, बस एक दूसरे से होड़ किये जा रहे है। 

यदि आपने किसी वाहन को अनजाने में ही सही, पीछे छोड़ दिया वो भी उसके आगे से कट मार के।  तो वो अपनी गाड़ी इतनी तेजी से भगा कर लाता है और आपको घूरता हुआ ऐसे निकलता है जैसे कि आप कोई अपराधी हो और आपको उस गंभीर अपराध के लिए किसी कारागार ले जाया जा रहा हो। और गलती से आपकी गाड़ी, आगे किसी गाड़ी से टकरा गयी तब आप तमाशा देखिये।  बीच सड़क पर गाड़ी रोक कर वो व्यक्ति पहले तो अपने गाड़ी के पिछवाड़े का निरीक्षण करता है। फिर आपके पास बड़े तैश से आता है, गाली गलोच करता है या पैसे मांगता है।  मानवता के धर्म के नाते वो ये भी नहीं पूछता कि "भाई, ठीक तो हो, कहीं लगी तो नहीं।"
इस होड़ की दौड़ में मानवता तो कहीं पीछे रह गयी।  धैर्य तो साहब बचा ही नहीं किसी में।  ऐसे लगता है मानो सब पहलवान बन गए है। बस लड़ना ही मानवता है उनके लिए। 

मैं आपसे ये सब इसलिए साझा कर रहा हूँ की ये दृश्य अब बहुत सामान्य हो गए है। और लुप्त हो गए हमारे संस्कार, शिष्टाचार, धैर्य, मानवता, ये शब्द या तो किसी पुस्तक में मिलते है या इस अभी लेख में मिल रहे है। 
आज किसी की सहायता के लिए हाथ उठना बंद हो गए है किन्तु वीडियो बनाने के लिए ये हाथ बहुत जल्दी उठते है। कभी कोई दुर्घटना घट जाती है तो ये ऐसे ही कुछ लोग वीडियो बनाते हुऐ दिख जाते है, जो अपने वीडियो से बताना तो चाहते है सबको कि ऐसी दुर्घटना घटी है, किन्तु बचाना नहीं चाहते इस दुर्घटना से हताहत लोगो को। 

ये तो भला हो कि चंद लोग ऐसे भी बचे है इस संसार में जिन्होंने हाल ही जे.एल.एन चौराहे (जयपुर) पर हुई दुर्घटना में हताहत व्यक्ति को अपनी समझ से तुरंत सी.पी.आर दिया और अस्पताल तक ले गए। उन देवतुल्य व्यक्तियों को नमन। और विनती है उन लोगो से जो छोटी छोटी बातो पर अपना धैर्य खो देते है, अपने ईगो को प्रेस्टीज पॉइंट बना लेते है, ये सब भुला कर लोगो की सहायता करे और अपने अंदर मानवता को पुनः विकसित करे। मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि आपके डी.एन.ए में ये अवश्य उपस्थित है। 

धन्यवाद

Friday, July 26, 2019

विफलता?

मेरे प्यारे दोस्तों, या यूँ कहूं कि मेरे दसवीं , बारहवीं और प्रतियोगी परीक्षा के अचयनित दोस्तों। ये लेख विर्निदिष्टतः आपके सब के लिए ही लिख रहा हूँ जो किसी परीक्षा में विफल हो जाने पर आत्महत्या जैसे बेतुके विचारो को अपने मष्तिष्क द्वारा आमंत्रित करते है। और कई विद्यार्थी तो इस आमंत्रण को स्वीकार भी कर लेते है और कर देते है अपने बहुमूल्य जीवन का अंत।

तो बन्धुवर, स्पष्टया ऐसा कदाचित ना करे और ना ही करने का प्रयास करे और ना ही ऐसे असंगत विचार अपने मन में लाये। जो लोग विफलता का स्वाद चखते है ना उनमे कई गुणों की भरमार होती है, वो है "सहनशक्ती", "घैर्य" और "साहस" जो की प्रायः सदैव सफल होने वाले लोगो की तुलना में कहीं अधिक होता है। मैं ये तर्क विफल लोगो को मात्र तसल्ली देने के लिए नहीं दे रहा हूँ अपितु ये मैंने स्वयं अनुभव किया है, जिसका उल्लेख मैं आगे करूँगा। 

मैंने किसी पुस्तक में एक सत्य घटना पढ़ी थी वो आपसे साझा करता हूँ - किसी शहर में लड़का रहता था। वो बहुत परिश्रमी था, सदैव अधययनरत रहता था। हर परीक्षा में हमेशा प्रथम आता था। चाहे परीक्षा दसवीं की हो या बारहवीं की या स्नातक की या व्यवसाय प्रबंध की, वो सदैव प्रथम आया परिणामस्वरूप उसकी अच्छे वेतन की नौकरी लगी। जिस से उसने कपडे, मकान, गाड़ी सब कुछ खरीद लिया। फिर उसने अपनी नौकरी से बचाये हुए धन से व्यवसाय शुरू किया, वहां भी उसने खूब मुनाफा कमाया। वो सिर्फ एक चीज़ नहीं कमा पाया वो थी विफलता, जिसका स्वाद उसने अपने जीवन काल में कभी चखा ही नहीं था। एक दिन ऐसा आया की उसे व्यापार में बहुत घाटा हुआ, उसका घरबार, गाड़ी , पैसे सब बिक गया और वो अपने परिवार समेत सड़क पर आ गया। उसमे विफलता की सहनशक्ति इतनी कम हो चुकी थी कि इस सदमे से उसने अपने प्राण त्याग दिए।

तो दोस्तों, विफलता से कभी निराश मत हो, वो हमे समस्याओं के सामने खड़ा रहना सिखाती है। वो जब मिलती है तो लगती बहुत बुरी है किन्तु वो अनुभव दे जाती है। जीवन जीने का सबक दे जाती है। सच मानो तो सफलता से कही अधिक महत्वपूर्ण होती है विफलता। 
अब इसका ये अर्थ बिलकुल नहीं है कि आप परिश्रम करना छोड़ दे। कही आप ये सोच कर प्रसन्न हो जाए कि विफलता से तो कितना कुछ मिल रहा है, हमे तो विफल ही होना चाहिए। नहीं, ये तर्क प्रासंगिक नहीं है। आपको निरंतर मेहनत करते रहना है, जो भी लक्ष्य आपने तय किया है वहां तक पहुंचना ही है। ये बीच में यदि विफलता मिल रही है तो ये आपको कुछ ना कुछ सिखाने मात्र के लिए है। इस से सबक लो और अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ो। बस ये आत्माहत्या जैसे दुर्बल शब्दों का प्रयोग बिलकुल ना करे। 

निसंदेह, लक्ष्य पाना बहुत कठिन होता है और कठिन का अर्थ आसान नहीं होता। समस्याए आएगी-जायेगी किन्तु महत्वपूर्ण है निरंतर मेहनत करते रहना। मैं आपको अपना अनुभव बताता हूँ।

मैं कक्षा दसवीं में हो गया फेल। उसके बाद मेरे घर, रिश्तेदारों, पड़ोसियों में आग की तरह ये खबर फैल गयी कि सिंह साब का लड़का दसवीं में फेल हो गया। कई तरह के ताने मुझे मारे गए। मुझे ये अहसास दिलाया गया की मैं नालायक, नाकारा लड़का हूँ जो अब अपने जीवन में कुछ नहीं कर पाऊँगा। मेरे मन में कई विचार आये कि मै घर छोड़ कर भाग जाऊँ या छत से कूद जाऊं। सम्भवतया मैं ये कर भी लेता किन्तु उस समय मैंने कही सुन लिया की जो होता है अच्छे के लिए ही होता है। हालांकि मुझे पता था कि दसवीं में फेल होने से बुरा क्या हो सकता है किन्तु मैंने उस प्रसंग के कारण आत्महत्या का विचार त्याग दिया और पुनः दसवीं की परीक्षा की तैयारी में लग गया। और खूब मेहनत की।
मजे की बात ये रही की मैं फर्स्ट डिवीज़न उत्तीर्ण हुआ। जिन लोगो ने मुझे ताने मारे थे उनके मुँह स्वतः ही बंद थे। लोगो ने तो ये तक कह दिया था कि इसको पढ़ाई बंद करवा दो, कुछ मजदूरी करवा लो, घर में २ पैसे ही लाएगा। तो आज मैं अपने इस लेख के माध्यम से बताना चाह रहा हूँ कि चार पैसे घर ला रहा हूँ। जो की ताने मारने वालो के अनुमान से दुगुनी राशि है।
फेल होने से जीवन समाप्त नहीं हो जाता। व्यक्ति अपने जीवन कुछ न कुछ तो अवश्य कर ही लेता है बशर्ते वो हिम्मत कभी ना हारे। किन्तु सबसे महत्वपूर्ण बात है निरंतर मेहनत, इसके बिना इस लेख का भी कोई औचित्य नहीं है।
आज मैं अपने परिवार के साथ सुखी जीवन व्यतीत कर रहा हूँ, १ बच्चा और २ पत्नियों के साथ। क्षमा चाहूंगा २ बच्चे और १ पत्नी के साथ। माता जी, पिताजी, दादाजी, दादी जी सब ही तो है घर में। सबके साथ मिलकर अच्छे से जीवन जी रहे है।

दोस्तों ये जीवन बहुत ही खूबसूरत है और कई उतार चढ़ाव से सुसज्जित है। समस्याओ का आना, उनसे लड़ना, और उन पर विजय पाना, मन को बहुत आनंदित करता है। समस्याओ से लड़ के उन्हें दूर भगाने के पश्चात् जो सुख की प्राप्ति होती है वो अद्भुत है और यही जीवन है। इसे दसवीं या बारहवीं या किसी भी परीक्षा की टुच्ची (असभ्य भाषा प्रयोग के लिए क्षमा) सी समस्या के लिए अपने जीवन का समापन करना मूर्खता ही है। गिरो तो उठ जाओ। फिर गिरो तो फिर उठ जाओ। बहुत ही सरल धारणा है। मेरा विशवास करो मित्रों, बहुत अच्छा होगा आपका जीवन यदि आप कही विफल भी होते हो तो भी। मैं प्रत्याभूति देता हूँ इस बात की। 

एक छोटा सा वृत्तांत बता कर लेख समाप्त करूँगा, एक बार एक व्यक्ति ने एक फल का वृक्ष लगाया। उसे सींचा और बड़ा किया। कुछ समय बाद उसमे फल लगने शुरू हुए। उस व्यक्ति ने उसे तोड़ कर खाया तो वो बेहद कड़वा था। अब उसने वृक्ष को कोसना शुरू कर दिया कि इतने वर्षो तक बड़ी मेहनत से इस वृक्ष को बड़ा किया और फल भी कड़वे निकले। कुछ राहगीरों ने भी फल चखे जो कि कड़वे निकले। वो भी इस वृक्ष को कोस कर चलते बने। वृक्ष बेचारा बहुत निराश हुआ और अवसाद में चला गया। उसने आत्महत्या करने की ठानी किन्तु वो इतना विवश था कि ना तो फंदे से लटक सकता था और ना ही किसी छत से कूद सकता था। ये विचार उसने त्याग दिया और सिर्फ धैर्य रखा। कुछ समय बाद उसने अपने फलो को पका कर स्वतः ही नीचे गिराना प्रारम्भ किया। वो व्यक्ति नीचे गिरे हुए फलो को देख कर फिर आया। उसने फल को चखा तो वो अब अत्यंत मीठे निकले। उसे बड़ा अफ़सोस हुआ की उसने अकारण ही वृक्ष को इतना भला बुरा कहा।

अब ये बात समझने योग्य है कि हर व्यक्ति विशेष, पेड़ पोधो ,प्रकृति इत्यादि का नियम होता है कि उन्हें अपने निर्धारित समय पर ही फल मिलता है वो भी मीठा। हर व्यक्ति विशेष होता है उसे अंको के आधार पर नहीं माप सकते। जो लोग अंको के आधार पर किसी व्यक्ति के नैतिक मूल्यों को नापते है और उसी क्षण उनके भविष्य की घोषणा कर देते है। बहुत ही बौनी मानसिकता वाले लोग होते है जिन्हे जीवन का सही अर्थ ही नहीं पता होता। हर व्यक्ति में एक अनूठा कौशल होता है, बस वही परखने की आवशयकता है। विफलता का हल आत्महत्या करना नहीं है अपितु ये है कि इस बार आप दुगुनी तैयारी से समस्या से लड़ने को निपुण है। 

मेरा ये लेख संभवतः मेरे दोस्तों तक सीधे तौर पर ना पहुंच पाए तो उनके परिजनों, मित्रो या सम्बन्धियों से अनुरोध है कि अपने बच्चो को ये लेख अवश्य पढ़ाये। यही कामना करूँगा की इस लेख से उनको या विद्यार्थीयो को और सम्बल मिले और विफलता मिलने के उपरांत भी वे अधिक से अधिक परिश्रम करके अपने लक्ष्य को प्राप्त करे।

शुभकामनाएं

Tuesday, July 9, 2019

भगवान के साथ संवाद - वाद विवाद

एक दिन रास्ते में मुझे एक वृद्ध महिला ने सहायता के लिए पुकारा। मैंने उनकी सड़क पार करने में सहायता की और साथ ही उन्हें खाने के लिए कुछ पैसे दिए।  उन वृद्ध महिला के ढेरो आशीर्वाद लेकर मैं मुड़ा ही था कि मेरे इष्टदेव मेरे समक्ष प्रकट हुए । एक बार को मैं खड़ा स्तब्ध रह गया फिर मैंने उनसे कहा "हे बजरंग बली, मैं धन्य हुआ जो आपके दर्शन हुए "। वे बोले की "ये तेरे अच्छे कर्म का परिणाम है", बोल क्या चाहिए तुझे, क्या समस्या है, अभी निवारण करता हूँ। मुझे कुछ समझ नहीं आया की उनसे क्या माँगू, सहसा एक बात दिमाग में आयी जो बहुत सालो से मेरे दिमाग में थी, वो मैंने उनके समक्ष रख दी।

मैंने कहा "हे पवन पुत्र हनुमान, आपने मुझे २ पुत्रिया दी है, क्या आप मुझे एक पुत्री और एक पुत्र का सुख नहीं दे सकते थे।  क्यों मुझे एक पुत्र के सुख से वंचित रखा"। बजरंग बली कुछ देर मौन रहे, फिर बोले कि "तू चल मेरे साथ श्री राम के पास वो ही तेरे इस प्रश्न का उत्तर देंगे"।

वो मुझे कुछ दूर एक छोटे से मकान में ले गए और मुझे बाहर खड़े होने को कहा।  मैं मन ही मन प्रसन्न हो रहा था कि एक तो मुझे मेरे इष्ट देव के दर्शन करने का सौभाग्य मिला और दूसरा मेरे प्रश्न के कारण भगवन श्री राम से मिलने का अवसर मिल रहा है। थोड़ी ही देर में मुझे अंदर से कुछ आवाज़ आयी।  ऐसा प्रतीत हुआ कि हनुमान जी, श्री राम को मेरा परिचय कुछ गलत ढंग से दे रहे थे। वे श्री राम से बोल रहे थे कि "प्रभु बाहर एक बहुत ही निर्लज वयक्ति खड़ा है जो एक लड़का और लड़की में भेद को लेकर कुंठित है।  मैंने उसके अच्छे कर्मो के बदले उसे दर्शन दिए और वो मुझे अपने अनर्गल प्रश्न से भ्रमित कर रहा है। इसलिए ही मैं उसे आपके पास ले आया"।

श्री राम ने उन्हें मुझे अंदर लाने के आदेश दिए। हनुमान जी बाहर आये और अपनी चढ़ी हुई भौंहों से मुझे अंदर आने का संकेत दिया।  हनुमान जी ने श्री राम के पास जाकर कहा "प्रभु यही है वो" और उनके पास हाथ बांध कर खड़े हो गए। श्री राम ने मेरी ओर देखा और कहा बोलो क्या बात है। मैंने उन्हें प्रणाम किया और अपना प्रश्न दोहरा दिया। श्री राम बोले "देखो, आज के युग में एक लड़के और लड़की में भेद करना मूर्खता है। दोनों में कोई अंतर नहीं है, अगर लड़का तेज है तो लड़की सरलता। लड़का अगर वंश आग्रहक है तो लड़की वंश रक्षक। दोनों ही एक समान है, उनमे कोई अंतर नहीं है"।

मैं श्री राम जी की बातें बड़े ध्यान से सुन रहा था। उनकी बात सुनने के बाद मैंने उनसे कहा "हे प्रभु इसमें कोई संशय नहीं कि इन दोनों में कोई अंतर नहीं अपितु एक बेटी अपने परिवार को बहुत ज्यादा स्नेह करती है किन्तु श्री राम अभी कल की ही बात है कि मेरी बेटी के स्कूल का एक ऑटो चालक मेरी बेटी को बड़ी आपत्तिजनक दृष्टि से देख रहा था और मेरी दृष्टि जब उस पर पड़ी तो वो सकपका गया और ऑटो तेजी से चला कर भाग गया।

मैं पूरे दिन सोचता रहा कि ये आज के युग में क्या हो रहा है जो खबरें अख़बार में पढ़ते थे वो इतनी आम हो गयी कि घर घर में किसी के साथ कुछ भी गलत घट सकता है। मैं इतना हतप्रभ हुआ और अपनी बेटी के लिए सुरक्षा का अभाव महसूस हुआ। बस इसी सुरक्षा की दृष्टि से एक पुत्र की कामना की ताकि मेरे बाद वो अपनी बहिन की रक्षा कर सके और मैं चिंतामुक्त हो पाता।  इसलिए आपके सामने ये प्रश्न पूछने की हिम्मत कर पाया"।

मैं वहा रुका नहीं, अपने अंदर जितना भी गुस्सा था वो अपने शब्दों से निकालना चाह रहा था। मैंने आगे कहा

"हे प्रभु, आज के समय में कही भी लड़किया सुरक्षित नहीं है।  उनकी अस्मिता छीनी जा रही है। बरसो से पली बढ़ी लड़कियों का चंद मिनिटो में बलात्कार कर दिया जाता है। चाहे रोडवेज की बस हो या कोई प्राइवेट टैक्सी। कही कोई सुरक्षित नहीं है।  लड़की चाहे इक्कीस बरस की हो या चार बरस की उन्हें हर स्थान पर वासना का शिकार बनाया जा रहा है। पता नहीं ये जीवाणु, विषाणु, कीटाणु जैसे विषैले तत्त्व कहा से उत्पन्न हो रहे है जो इन लड़किया की असुरक्षा के प्रमाण पत्र को सत्यापित कर रहे है। इनके लिए कही से भी किसी कीटनाशक का प्रबंध करवाओ प्रभु। ऊपर से हमारी न्याय व्यवस्था कोई कठोर कदम नहीं... "
मेरा इतना कहना ही था कि श्री राम ने मुझे बीच में ही रोक कर एक गहरी सांस ली और गंभीर मुद्रा में कुछ सोच कर बोलने ही वाले थे कि मेरी आँख खुल गयी। बिना उत्तर मिले मेरे प्रश्न अधूरे रह गए और मैं फिर से भगवान के स्वपन में आने की प्रतीक्षा कर रहा हूँ।